उलझन...

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प्रिये अपनी उलझन को पल पल बढ़ाने की जरूरत क्या
छोड़ना है तो किसी भी बहाने की जरूरत क्या है
अगर लग चुकी है आग तो जरूरी है धुँआ तो उठेगा ही
फिर दर्द को दिल में ही छुपाने की जरूरत क्या
उम्र भर रहना है अगर मुझसे दूर तुम्हें
फिर मेरे ख्वाबों में आने की तुम्हे जरूरत क्या
अजनबी रंग छलकता हो अगर तेरी आँखों से
उनसे फिर भी हाथ मिलाने की जरूरत क्या है
आज बैठे है तेरे पास कई दोस्त नये
अब तुझे दोस्त पुराने की जरूरत क्या
साथ रहते हो मगर साथ नहीं रहते हो
ऐसे रिश्ते को भी निभाने की जरूरत क्या...✍

Jaswinder chahal
18/1/2024

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