बहुत उपकारी हो तुम , प्रकृति
पर दुनिया नादान
करती है तुम्हारा दोहन
तुम देती हो हमें शीतल जल
हम करतें है इसे दूषित
तुम देती हो हमें प्राणवायु
हम करतें है उसे भी प्रदूषित
तुम्हारे ये वन-उपवन फल-फूल
झील-नदियाँ, खेत-खलिहान
सब करतें है हमारा कितना उपकार
और हम करतें है सबको नष्ट
करके रसायनों और कीटनाशकों का प्रयोग
देखों कितनें लोभी और कितनें कलुषित हैं हम
जो छीन रहे है वन्य जीवों से उनके घर
बसा ली हमनें केवल अपनी ही बस्तीया
पर अफसोस ना जानें, कब समझेंगे
कब सुधरेंगे हम, प्रकृति
जो अब भी ना सम्भलें अब भी ना जागे
तो होगी यही हमारी सबसे बड़ी भूल...✍Jaswinder chahal
7/10/2024
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Navigating Life tapestry : through quotes शब्द
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