पेड़...

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जितनी पत्तियाँ हैं उतने दुख भी तो हैं पेड़ के
जितनी शाखाए हैं जितने फल हैं
उतनी आशंकाएं भी तो है
जितनी गहरी छाया है
यातना भी उतनी ही गहरी
जितनी गहरी जड़ें हैं
उतनी गहराईयो तक है उखड़ना
जितनी ऊँचाईया है
उतने ही ऊँचे होने हैं आघात
बीज फिर भी क्यों होना चाहते हैं पेड़
मनुष्यों की तरह शायद नहीं होते पेड़
अपने बीजों को वो अपनी बुरी स्मृतियाँ नहीं देते
उन्हें वे सिर्फ फलों की फूलों की रंगों की
खुशबुओं की
मौसमों और चिड़ियों की स्मृतियाँ ही देते हैं
दुखद स्मृतियों से उन्हें रखते हैं मुक्त
घृणा और हिंसा से भरे इस समय में
पौधों को सींचते हुए करता हू यही कामना
कि अब मनुष्य जन्म नही चाहता
बस मैं मिट्टी में कर सकूँ प्रवेश
इक बीज की तरह, और फिर इक पेड़ हो जाऊँ
भले ही कट जाऊँ, पर किसी के काम तो आऊँ...✍

Jaswinder chahal
7/10/2024

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