गुलाब...

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सुख गए जो, वो गुलाब थे
गुलाब जो थे सुख ही गए
कब तक खुशबुए
अपनी बिखेरते जहाँ में
कब तक खुशरंग,
बन कर महकते इस फ़िज़ा में
तुम्हारी तरह काँटे तो नही
कि सूख कर
नश्तर बन दंश ही दंश देते रहे
जब मनचाहा शूल की तरह
चुभने का काम करते...✍

Jaswinder chahal
30/5/2024

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