एक ख्वाब
एक ख्वाब देखा है मैने,
चादर ओढ़, तारो के तले,
सांसो से चाँद बुझा,
एक ख्वाब देखा है मैनें.
एक ख्वाब
रात की मीठी चुभन में,
उड़ते परिंदे, जो घर भूल गये
उनके साथ उड़ान भर
एक ख्वाब देखा है मैनें.
एक ख्वाब
जिसमे सुबह होते ही
गुलाब की पंखुड़ियों
की खिड़किया खोल तुम अंगड़ाई लो
वो ख्वाब देखा है मैने
एक ख्वाब
जिसमे मैं बादलों में हवा भर
तुम्हारी सूरत बना दूँ
और तुम प्यार से बारिश बन बरसो
ये ख्वाब देखा है मैने
एक ख्वाब
जिसमे तुम झील हो
और मैं एक नाविक...
तुम्हारे आगोश मे सफ़र कटे मेरा...
ये ख्वाब देखा है मैने...
एक ख्वाब
जिसमे तुम बहती पवन हो
और मैं टूटा पेड़ का पत्ता
ले चल मुझे अपने संग तू दूर...
ये ख्वाब देखा है मैने...
कविता: आशुतोष मिश्रा
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दरवाजे पर दस्तक
Poetry[Highest rank: 34] तेरी मासूमियत को मेरी रूह चूमती थी, तेरी रूह को मेरी नवाजिश रास आती थी! It's a collection of my Hindi/Urdu Poetry.