'एक ख्वाब'

255 60 61
                                    




एक ख्वाब

एक ख्वाब देखा है मैने,

चादर ओढ़, तारो के तले,

सांसो से चाँद बुझा,

एक ख्वाब देखा है मैनें.



एक ख्वाब

रात की मीठी चुभन में,

उड़ते परिंदे, जो घर भूल गये

उनके साथ उड़ान भर

एक ख्वाब देखा है मैनें.



एक ख्वाब

जिसमे सुबह होते ही

गुलाब की पंखुड़ियों

की खिड़किया खोल तुम अंगड़ाई लो

वो ख्वाब देखा है मैने



एक ख्वाब

जिसमे मैं बादलों में हवा भर

तुम्हारी सूरत बना दूँ

और तुम प्यार से बारिश बन बरसो

ये ख्वाब देखा है मैने



एक ख्वाब

जिसमे तुम झील हो

और मैं एक नाविक...

तुम्हारे आगोश मे सफ़र कटे मेरा...

ये ख्वाब देखा है मैने...



एक ख्वाब

जिसमे तुम बहती पवन हो

और मैं टूटा पेड़ का पत्ता

ले चल मुझे अपने संग तू दूर...

ये ख्वाब देखा है मैने...





कविता: आशुतोष मिश्रा


................................................................................



Thank you for reading!

Please do vote if you liked the poem. 
Kindly Comment, I'd love to hear from you!
I am open to suggestions. 


दरवाजे पर दस्तकजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें