सपनो का सैलाब
* * *
आँखो में वो सपनो का सैलाब छोड़ आया
दिल मे उसके अपना एहसास छोड़ आया।
हाथों की लकीरों में अपनी किस्मत छोड़ आया
उसके ख्वाबों मे अपनी रूह बसा आया।
चाँद और उस चेहरे के बीच अब्र छोड़ आया
सितारों के अंजुमन में अपनी ख्वाहिशें छोड़ आया।
इंतिहान तो ये इंतेज़ार है उनके फिर से मिलने का,
यक़ीनन चाहत के धागों में, सब्र के मोती छोड़ आया।
-आशुतोष मिश्रा
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दरवाजे पर दस्तक
Poetry[Highest rank: 34] तेरी मासूमियत को मेरी रूह चूमती थी, तेरी रूह को मेरी नवाजिश रास आती थी! It's a collection of my Hindi/Urdu Poetry.