आओ तुम्हे बाज़ार से एक जिस्म दिलाऊं,
आओ तुम्हे ज़माने का एक घिनौना मज़ाक दिखाऊं,
ज़रा संभाल के रखना कदम इस गली में,
आओ तुम्हे सिक्कों मे बिकती लाज़ दिखाऊं!
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ज़रा रूको, सुनो, आँखे करो बंद, और सुनो,
एक आवाज़, नहीं पुकार, नहीं चीख, नहीं कुछ भी नहीं,
छोड़ो, जाने दो, ये तो बस बेतरतीब खामोशियाँ है,
मुस्कुराओ और आगे बढ़ो, अभी बाकी बहुत रंगीनियाँ है!
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आओ तुम्हे बाज़ार से एक जिस्म दिलाऊं,
आओ तुम्हे रात की कोख मे एक स्वप्न दिखाऊँ
देखो, उन थिरकते कदमों को, छनकते कंगन को,
इज़्ज़तदारो की महफ़िल में तुम्हें भी अब एक जगह दिलाऊं
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ज़रा रूको, ठहरो, इस घाव को महसूस तो करो
जो मासूमियत की गर्दन पे योवन की धार ने किया है
एक मरते हिरण का शिकार जो पूरे समाज ने किया है
अच्छा छोड़ो, खैर जाने दो, मुस्कुराओ और आगे बढ़ो !
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आओ तुम्हे बाज़ार से एक जिस्म दिलाऊं,
आओ तुम्हे इनके दिल की बात बताऊं
कुछ अगवा है, कुछ विधवा है, कुछ अबला है,और कुछ विस्मृत.
जीवन के विश को पीती जाए जैसे हो निश्छल अमृत
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ज़रा रूको, और तबीयत से थोड़ा गौर करो
इज़्ज़तदारों की बगियाँ में
ये चुभते जैसे हों काँटे
जिस जीभ से दिन मे गाली निकले,
वह जीभ रात में चौखट चाटे
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A/N
The Poem is one of my personal favorites and I worked very hard to pen down these difficult thoughts. Read the poem, understand it, think about it and write your views in the comment section.
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दरवाजे पर दस्तक
Poesía[Highest rank: 34] तेरी मासूमियत को मेरी रूह चूमती थी, तेरी रूह को मेरी नवाजिश रास आती थी! It's a collection of my Hindi/Urdu Poetry.