राजाजी के सामने
सारे मस्तक झुक गए
सियासत सारी भीग गयी
मीडिया पूरी बिक गयी
ईमान का सौदा हुआ
मुद्दे राख हो गए
आदमी भूक मर रहा
सरकारी अफसर सो रहे
दाम गगन छू गए
वादे सारे छू हुए
भीड़ कच्चा खा गई
इंसाफ सस्ता बिक गया
औरत डरने लगी
आबरू बिकने लगी
बैंको के ताले पड़े
सड़क पर हैं सब खड़े
सबकी जबान सील गयी,
सपने सबके रुक गए
राजाजी के सामने
सारे मस्तक झुक गए
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दरवाजे पर दस्तक
Poetry[Highest rank: 34] तेरी मासूमियत को मेरी रूह चूमती थी, तेरी रूह को मेरी नवाजिश रास आती थी! It's a collection of my Hindi/Urdu Poetry.