~मैं एक नाज़ुक सा खिलौना
तू एक काँच की गुड़िया,
मैं नाव किसी कागज से बना
उसपे लिखी कविता है तू!
~
तू घुल रही है श्याही सी
मैं पिघल रहा उस पानी में,
तू चलती हवा एक साँझ की
और उड़ने का एहसास हूँ मैं!
-आशुतोष मिश्रा
A/N
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'Arrivederci'
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दरवाजे पर दस्तक
Poetry[Highest rank: 34] तेरी मासूमियत को मेरी रूह चूमती थी, तेरी रूह को मेरी नवाजिश रास आती थी! It's a collection of my Hindi/Urdu Poetry.