नाज़ुक सा खिलौना

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~

मैं एक नाज़ुक सा खिलौना

तू एक काँच की गुड़िया,

मैं नाव किसी कागज से बना

उसपे लिखी कविता है तू!

~

तू घुल रही है श्याही सी

मैं पिघल रहा उस पानी में,

तू चलती हवा एक साँझ की

और उड़ने का एहसास हूँ मैं!



-आशुतोष मिश्रा


A/N

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'Arrivederci'

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