पेट्रोल, मीडिया, और हम
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बहुत हुई पेट्रोल की मार
अबकी बार मोदी सरकार।
चल गयी जब मोदी की कार
हो गया पेट्रोल एक सौ पार।
जेबें ढीली हो गयी यार
गाड़ी एक है पहिए चार।
रुपया पड़ गया बहुत बीमार
विकास की हो गयी जय जयकार।
महंगाई थी जो डायन कल तक
बन गयी वह अब डार्लिंग यार,
बढ़ते दामों के फ़ायदे बताते
मिल जाएँगे बहुत कुमार।
एक वक़्त था जब हर कोई
सत्ता से सवाल करता था,
न मीडिया पीछे हटता था
न आम आदमी डरता था।
लोकतंत्र के रणक्षेत्र में
मीडिया होती थी तलवार,
तीखे घाव करती थी जो
वह आज हुई कितनी लाचार।
मीडिया को अब हुआ बुखार
पेट्रोल पहुँचा सौ के पार,
फीकी पड़ी विपक्ष की धार
ग़रीब गया हर जंग हार।
जुमलों की दुकान है ये सरकार
इस देश का कर दिया बँटाधार,
यूएपीए का धौंस दिखाके
सर पे लटका दी तलवार।
लेखक: आशुतोष मिश्रा
डिसक्लेमर:
इस कविता का मकसद किसी भी सत्ता प्रेमी और उसके पेट्रोल प्रेम का मज़ाक बनाना नहीं है। लेखक के पास तो कोई गाड़ी भी नहीं है। अक्सर पैदल ही चलता है...अर्थव्यवस्था भी अब पैदल ही चल रही है। आप भी परेशान है तो पैदल चलिए। हवाई चप्पल वालों को सरकार हवाई जहाज़ में बिठा देने का जुमला मेरे मतलब है वादा कर चुकी है! हो सकता है आपका नंबर आ जाए।
धन्यवाद!
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दरवाजे पर दस्तक
Poetry[Highest rank: 34] तेरी मासूमियत को मेरी रूह चूमती थी, तेरी रूह को मेरी नवाजिश रास आती थी! It's a collection of my Hindi/Urdu Poetry.