बचपन

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ये हवायें अक्सर

तेरा एहसास

समेट लाती हैं,

बचपन की वो बातें

अपनी सरसराहट मे घोल लाती है

ले आती है,

सांझ मे डूबी कुछ यादें,

उन परिंदो के कोलाहल में लपेट!

और अक्सर उन सीली दीवारों पे तैरती

वो बचपन की मछलियाँ,

सतेह पे आकर,

मुझे बुलावा दे जाती है

फिर से उन बचपन के

लम्हो को जीने का!


  

~ August

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I know it was a short poem, but I intended it that way only. So, how was it?

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Thanks a lot for reading.

Sayonara! 

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