खेतखेत अब कब्र बन रहे हैं
उग आ रहीं हैं यहाँ
खून से सनी क्यारियाँ
सूखे हाड़ की डालियाँ
दिख रहें है कई पेड़
जहाँ लटकी हैं लाशें
सोचता हूँ यह देखकर
क्या नेताओं ने खेत जोते हैं
वह खेत जो अब कब्र बन गए हैं।- आशुतोष मिश्रा
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दरवाजे पर दस्तक
Poetry[Highest rank: 34] तेरी मासूमियत को मेरी रूह चूमती थी, तेरी रूह को मेरी नवाजिश रास आती थी! It's a collection of my Hindi/Urdu Poetry.
खेत
खेतखेत अब कब्र बन रहे हैं
उग आ रहीं हैं यहाँ
खून से सनी क्यारियाँ
सूखे हाड़ की डालियाँ
दिख रहें है कई पेड़
जहाँ लटकी हैं लाशें
सोचता हूँ यह देखकर
क्या नेताओं ने खेत जोते हैं
वह खेत जो अब कब्र बन गए हैं।- आशुतोष मिश्रा