कहना सुनना
मैने कहना सुनना कुछ
दिनो से बंद कर दिया है
यह कोई ज़िद कोई हठ नहीं
एक सोचा समझा
आध्यात्मिक फ़ैसला है।इसके पीछे एक ढलता जीवन
दो-तीन विवाह, कुछ बच्चे
हाथ से फिसली नौकरी,
ज़मीन, जायदाद, ज़ेवर,
बुढ़ापा, चोरी, डकैती,
बम-बारी, और लूट खसोट
जैसी घटनाओं का हाथ हैं।अब मैं थक हार चुका हूँ
अख़बार के कोनों में
उम्मीदें खोजता हूँ,
होस्टल में धुत्त पड़े
युवाओं में देश का भविष्य
गिफ्ट के नाम से इधर उधर
होता दहेज देखता हूँ,
टेबल के नीचे से
खिसकती रिश्वत सूँघता हूँ,
रिश्तों में एक ख़ालीपन,
एक स्वार्थ की महक,
एक भयावह यथार्थ देखता हूँ।बस इन्ही सब बातों को
मद्देनजर रखते हुए
मैने कहना सुनना कुछ
दिनो से बंद कर दिया है।- आशुतोष मिश्रा
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दरवाजे पर दस्तक
Poetry[Highest rank: 34] तेरी मासूमियत को मेरी रूह चूमती थी, तेरी रूह को मेरी नवाजिश रास आती थी! It's a collection of my Hindi/Urdu Poetry.