एक झील है नीली , नीली जैसे श्याही
श्याही बस यूँही सजा रखी है मैने कलम में ,
वो कलम अक्सर भूल जाता हूँ , पुरानी मेज पर ,
मेज पर रखी है कुछ किताबें ओर कुछ खत,
खत जो लिखे है तुझे, भेजे नहीं पर कभी
कभी कभी सोचता हूँ, जला दूँ उन्हे!
क्या पता कब किसी रोज खुद जा पहुचें तुम्हारे पास
तुम्हारे पास अपना दिल छोड़ आया था,
था भी क्या उस दिल मे प्यार के सिवा!
सिवा इस बात के की खूबसूरती का नाम थी तुम!
तुम तुम्हारी हसीं, तुम्हारे ख्वाब,
ख्वाब जो बस तुम्हारी पलको के साये मैं,
उस साये में एक गुलाब मेरा भी खिल रहा होगा
होगा एक नया सवेरा और उस गुलाब की खुशबू,
खुशबू तैर रही होगी तुम्हारी साँसों में!
साँसे जो मेरे गालो पे आज भी मरहम लगाती है!
मरहम उन घाव के जो तुमसे दूर रह कर समय ने मुझको दिए,
दिए जलते है चौखट पे मेरी, इसी इंतेज़ार में की कभी
कभी तो तुम इस ओर चली आओ!
आओ मेरे छोटे से घर में, एक चाय पीते है साथ
साथ बनाते है कोई चित्र जीवन का!
जीवन के खाली पन्नो पर, कुछ रंग उड़लते है!
उड़लते हैं बची उमर, जी लेते हैं कुछ ख्वाब, कुछ सपने,
सपनों से ही बनेगा अपना ये चित्र, जिसमें होंगे हम साथ,
साथ एक दूजे का हाथ थाम, बस घुरेंगे किसी बादल को,
बादल जो कभी बरसेगा नहीं, और फिर तुम कहोगी की देर हो रही है
देर हो रही है, घर जाना है तुम्हे
तुम्हे अलविदा कहूँगा फिर एक बार ओर तुम मूड़ के भी ना देखोगी!
देखोगी तो शायद मैं हाथ में कुछ खत लिए खड़ा रहूँगा
खड़ा रहूँगा इसी उलझन मे की ये खत तुम्हे दूँ की नही...!
कविता : आशुतोष मिश्रा
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दरवाजे पर दस्तक
Poetry[Highest rank: 34] तेरी मासूमियत को मेरी रूह चूमती थी, तेरी रूह को मेरी नवाजिश रास आती थी! It's a collection of my Hindi/Urdu Poetry.