मुलाक़ात
मैं उस मुलाक़ात को मुलाक़ात नहीं मानता
वह बस दो दिशाओं का कुछ पल ठहर जाना था,
जब वह पल बीत गए,
तो हम फिर से वही हो गए जो थे,
दो अलग अलग दिशाएँ।
- ऑगस्ट
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दरवाजे पर दस्तक
Poetry[Highest rank: 34] तेरी मासूमियत को मेरी रूह चूमती थी, तेरी रूह को मेरी नवाजिश रास आती थी! It's a collection of my Hindi/Urdu Poetry.