अध्याय 6 (भाग 7)

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"किंतु मैंने तो कोई पत्र ही नहीं भेजा था!" केशव बोला। "उस दिन..."

अर्जुन यह सुनकर कुछ समझ ना पाया, "उस दिन क्या...?! तुम्हारे साथ उस दिन के आखिर हुआ क्या??" उसने तुरंत पूछा। केशव सब कुछ बताना आरम्भ करता है।

उस दिन केशव को काल कोठरी में डाल दिया गया। उसे समझ ना आया कि अखिरकार उसका अपराध क्या है।

कुछ क्षण पश्चात कुछ सैनिक आए और उसे अंधाधुंध पीटने लगे। केशव को लहू लोहान करके जाते समय उसमें से एक सैनिक दूसरे को बोला, "विश्वास नहीं होता कि सेनापति होकर भी इस तरह का व्यावहार कोई कर सकता है। अरे महाराज ने इन्हें उच्च स्थान का सुझाव कार तक बना दिया और उनके पीठ पीछे इन्होंने यह सब किया। छी छी! मुझे तो कह्ते हुए भी लज्जा आती है।" वह दोनों ऐसा कहकर वहाँ से चले गए।

केशव को भूखा प्यासा रखा गया। उसे पूरे दिन ना कुछ खाने को मिलता और ना ही कुछ पीने को। और तो और हर रोज कुछ सैनिक भी भेजे जाते उसे पीटने के लिए। दस दिन तक ऐसा ही रहने पर केशव की हालत गंभीर होती गयी। पूरी काल कोठरी रक्त से लाल हो चुकी थी। उसके शरीर के हर एक अंग पर घाव थे। ऐसा कोई अंग ना बचा था जहाँ घाव ना बने हो। सिर से लेकर एड़ी तक। भूखा प्यासा वह मार खाता रहा। लहू लोहान होता रहा। उसने कोई प्रश्न ना किया। उसे केवल यह चिंता सताती थी कि अर्जुन के साथ क्या किया जा रहा होगा।

किन्तु उसका हृदय उस दिन कांप उठा जब उसे काल कोठरी के अध्यक्ष सेतु ने आकर बताया, "यह सब कुमार अर्जुन के कहने पर किया जा रहा है। महाराज के सामने उन्होंने यह स्वीकारा है कि तुमने उनके साथ ज़बरदस्ती करने का प्रयास किया है। दंड स्वरूप तुम्हारे साथ तब तक यह करने की आज्ञा थी जब तक तुम मृत्यु को प्राप्त नहीं हो जाते किंतु महाराज को तुम पर दया आ गयी। उन्होंने तुम्हारे समक्ष दो विकल्प रखे है। या तो इसी तरह काल कोठरी में मृत्यु तक रहो या फिर चुपके से बिना किसी को दिखे गुप्त द्वार से भाग जाओ। मृत घोषित होगे तो फिर भी बच जाओगे किंतु यदि यह खबर प्रजा तक पहुंची कि तुमने कुमार के साथ यह हरकत की तो उसका परिणाम तुम स्वयं जानते हो।" ऐसा कहकर उसने मुँह फ़ेर लिया। वह स्वयं ये सब नहीं करना चाहता था। वह सब कुछ अंशुमन के कहने पर कर रहा था। ना अर्जुन को इसका ज्ञात था और ना ही महाराज को।

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