अध्याय 6 (भाग 6)

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अंशुमन ने देवेन्द्र की ओर क्रोध से देखा। उसे सब ज्ञात था कि वहाँ क्या हो रहा था। उसने तुरंत अपने सैनिकों को आक्रमण करने को कह दिया। तब तक तीर्थ और लव भी अबूझ राज्य के सैनिकों संग वहाँ पहुँच गए थे।

देवेन्द्र ने भी अपनी सेना को हमला करने का निर्देश दिया। दोनों राज्य के सैनिक आपस में भिड़ने लगे। उसी बीच इन्द्रजीत ने स्वयं को सैनिकों से छुड़वाया और तुरंत अर्जुन की ओर भागा। ये देखके केशव ने अर्जुन का हाथ छोडकर तुरंत अपनी तलवार म्यान से निकाली और इन्द्रजीत की ओर साधा। इन्द्रजीत का ध्यान केवल अर्जुन की ओर था। वह तलवार अपनी ओर देखकर भी रुका नहीं और अर्जुन की ओर भागता रहा। तलवार उसके सीने में उतरने ही वाली थी कि केशव ने तुरंत तलवार नीचे की। उसे यकीन नहीं हुआ कि इन्द्रजीत ने स्वयं की चिंता ना करते हुए केवल अर्जुन को बचाना चाहा। वह उसकी ओर आश्चर्य से देख रहा था। उसने देखा कि इन्द्रजीत की आँखें भरी हुई थी जबकि उसने सुना था कि सवर्ण लोक के युवराज कभी किसी के लिए नहीं रोए। वह चाहकर भी इन्द्रजीत को अर्जुन के पास जाने से नहीं रोक पाया। एक पल के लिए उसका हाथ उसे रोकने के लिए उठा किंतु इन्द्रजीत के नेत्रों में अर्जुन के लिए प्रेम देखकर उसके हृदय ने उसे ऐसा करने से रोक लिया व उसने हाथ नीचे कर लिया।

इन्द्रजीत और अर्जुन एक दूसरे की ओर भागे। इन्द्रजीत ने तुरंत उसे केशव से दूर खींचा। "आपने इतनी देर क्यूँ लगाई, कुमार?" अर्जुन अश्रु पोछते हुए बोला।

"क्षमा कीजिएगा।" इन्द्रजीत ने कहा। ऐसा कहकर वह उसे वहाँ से ले जाने लगा। उसे लगा कि केशव उसे रोकेगा। वह लड़ने के लिए पूर्ण रूप से तैयार था किंतु इन्द्रजीत ने ऐसा नहीं किया। यह देखकर वह हैरान था। वे दूर चले गए। अबूझ राज्य के सैनिकों ने उन दोनों की जांच की। वे दोनों ठीक थे। ये देखकर उनकी जान में जान आई। वे वहाँ से जाने ही वाले थे कि अर्जुन पीछे मुड़ा ताकि वह केशव को अंतिम बार देख सके। उसने देखा कि केशव उसकी ओर रोते हुए देख रहा था। उसके कदम थम गए।

उतने में अंशुमन के सैनिकों ने केशव को बँधी बना लिया। उसने अपनी रक्षा भी ना की।

"केशव!" देवेन्द्र चिल्लाया और उसकी ओर जाने लगा कि तभी अंशुमन ने उसकी गर्दन पर अपनी तलवार साध के उसे रोक लिया। दोनों पक्षों के सैनिक भी अब शांत हो चुके थे।

"केशव..." अर्जुन चिंता में बोला। उसे समझ नहीं आया कि वह क्या करे। केशव ने नजरे नीचे कर ली थी मानो उसने हार मान ली हो।

"तुम्हारा क्या किया जाए, विश्वासघाती!" अंशुमन ने केशव की ओर देखकर कहा।

"उसे जाने दो!" अर्जुन चिल्लाया। अंशुमन ने तुरंत उसकी ओर देखा।

"कुमार अर्जुन, क्यूँ?" अंशुमन ने क्रोध में कहा।

"मैं बस एक बार...जानना चाहता हूं..." अर्जुन के नेत्रों से अश्रु बहने लगे,  "कि तुमने क्यूँ मेरे साथ ऐसा किया, केशव?"

अंशुमन ने तुरंत उसकी ओर देखा, "मैंने क्या किया?" उससे पूछा।

"वो पत्र...जिसमें तुमने लिखा था कि...मुझे तुम्हें भूल जाना चाहिए क्योंकि तुम भी ऐसा ही करने वाले हो जिसके लिए तुमने विवाह भी कर लिया है..."

केशव ने यह सुनकर उसकी ओर हैरानी से देखा।

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