अध्याय 9 (भाग 11)

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उमा और राधा, अर्जुन और मधु को इंद्रजीत के कक्ष में ले गए।

"आओ, अर्जुन।" उमा ने कहा। वे चारों कक्ष के भीतर गए।

अर्जुन ने देखा, कि इंद्रजीत पलंग पर लेटा हुआ हैं और उसके नेत्र बंद हैं। उसे अत्यंत चिंता होने लगी।

"क्या हुआ इन्हें अचानक? सवेरे तो ठीक थे न।" अर्जुन ने चिंता व्यक्त की।

"जी, पता नही क्या हुआ। अचानक तबियत बिगड़ गई।" राधा ने उत्तर दिया।

अर्जुन इंद्रजीत की ओर गया।

"अधिक निकट मत आइये!" इंद्रजीत मन में सोच रहा था। वह तो केवल उमा के कहने पर अभिनय कर रहा था। तभी उसने नेत्र खोल दिए। वह अर्जुन को देखना चाहता था। उसने अभिनय करते रहने का अधिक प्रयास किया, किंतु अंततः वह स्वयं पर नियंत्रण नही रख पाया।

"कुमार अर्जुन?" वह धीमे से बोला।

"अरे, यें क्यों उठे?" राधा ने उमा से कहा। मधु ने यह सुन लिया। वह उनकी ओर देखने लगी। उसे कुछ समझ नही आया।

"युवराज इंद्रजीत..." अर्जुन पलंग पर जाकर उसके निकट बैठा व उसके माथे पर हाथ लगाकर उसका तापमान देखने लगा। "तापमान तो ठीक हैं..." उसने कहा।

तभी उमा शीघ्रता से उनकी ओर गया। "अब मस्तक की पीड़ा कैसी हैं?" उसने पूछा।

"मस्तक में पीड़ा?" इंद्रजीत बोला। उसे समझ नही आया।

"हाँ... आप ही तो कह रहें थे कि आपके मस्तक में पीड़ा हो रही हैं..." उमा बोला।

"पीड़ा...?" इंद्रजीत अभी भी समझा नही। तभी उसने उमा के नेत्रों में देखा, और उसे समझ आ गया। "हाँ! हाँ! वो? थोड़ा... पहले से बेहतर हैं। किंतु... किंतु पीड़ा अभी भी हैं।" वह ऐसा कहकर फिर से नेत्र बंद कर लेटा हैं और अभिनय करने लगा।

अर्जुन तुरन्त उसके मस्तक की प्रेम से मालिश करने लगता हैं।

इससे इंद्रजीत की धडकने बढ़ने लगती हैं। वह शांत हो जाता हैं।

"क्या ऐसे पीड़ा थोड़ी कम होती हैं?" अर्जुन ने प्रश्न किया।

"जी?" इंद्रजीत ने एक बार उसकी ओर देखा, फिर दोबारा दूसरी ओर देखा। "जी..."

BL - क्षत्रिय धर्म सर्वप्रथम (Duty Always First)जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें