कभी आ।

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यूँ तो रिप्लाई ना करने के बहाने हैं हज़ार,
कभी पूरे दिन बात करने को आ...

यूँ तो गुमराह होने में मज़ा तो है बहुत,
कभी सीधे रास्ते ही चलने को आ...

यूँ तो मुक्के मारने में मश्गुल है तू इतना,
कभी गले लगाने को भी तो आ...

यूँ तो ख़पत तो है बहुत होने में संजीदा,
कभी हँसी- मज़ाक के लिए ही तो तू आ...

यूँ तो कही बात मिटाने में भी है मज़ा,
कभी छुपी बातों को भी कहने को आ...

यूँ तो कम शब्दों में बयां करती हैं,
कभी शब्दों के समंदर में डुबने को आ...

यूँ तो समझी बातें ना समझने की आदत है खराब,
कभी अनसुलझी बातें करने को आ...

यूँ तो यूँही हँस देने में भी है नशा,
कभी साथ रो देने को भी तू आ...

यूँ तो इतने बेरूखे अंदाज का धनी है तू,
कभी अंदाज बदलने को भी तो आ...

यूँ तो शुक्रिया कहने में हिचकते नहीं,
कभी ख़ैरियत भी पुछने को आ...

लक्ष्य

चित्र स्त्रोत: इंटरनेट से।

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