अनज़ान

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अनज़ान शहर में एक अनज़ान वासी
बन के गया था मैं एक अनज़ान स्कुल में।
अनज़ान सहपाठी अनज़ान शिक्षक,
श्वांस की हवा भी थी अनज़ानी-सी।

जहाँ मैं नया बाकी वाकई थे अनज़ाने बने हुए।
एक आवाज़ अनज़ानी-सी, अनसुनी आवारी-सी।
मेरी स्वशोचित धारना के बिल्कुल विपरीत,
थी वो मुझसे मेरा नाम पुछ रही...

एक मुस्कान नादानी भरी, प्यारी-सी कुछ अपनी-सी,
बगल के सानिध्य से दिल में बसी कहानी थी।
एक अनज़ाने सफ़र की बिन तैयारी शुरुआत हुई,
अपना रास्ता बनाना शुरू कर चुकी यारी, जो तभी अनज़ान थी...

अनज़ान खेल-मैदान उसमें खिलाड़ी तीस मार खाँ,
एक अनज़ान चबुतरे पर जानी पहचानी-सी टिफिन।
मँझे हुए लोगों के बीच एक अनज़ानी-सी प्रस्तुति,
वो पहली बार बैटिंग पर उड़ने वाली कमबख़्त गिल्ली...

अनज़ानी-सी परिक्षाएँ अनज़ानी-सी प्रतियोगिताएँ,
पर जानी पहचानी-सी दोस्ती।
एक-एक कदम ओर प्रगति की,
कुछ नाकाफ़ी-सी कुछ अद्भूत नायाब़ रही...

अनज़ाने लोगों के प्रति वो बढ़ती दीवानगी़
एक दूसरे को अपनी स्वघोषित मंजिल की पड़ी,
जो पल पहले अनज़ान थे, पल में उनकी चित्त खुली नई-
एहसासों की लहरों में वो अनज़ानी-सी दुबकी नवीन...

अनज़ान शहर को अलविदा कहने की घड़ी
प्लेटफार्म से जो निकली नवजीवन की रेलगाड़ी।
अफ़सोस रुमाल ना दिखा पाने का,
उन शब्दों में बसी एक बेकसी रूमानी-सी...

प्रत्यक्ष बातें अब यंत्रों से हैं होती,
सुख-दुःख आज भी बाँटने में नहीं कोई कमी।
नई-नई भावनाएँ नई-नई कामयाबियाँ-
हर कदम पर दो पल की जानी पहचानी-सी बधाईयाँ।
नई-नई कठिनाइयाँ नई-नई बेबसियाँ-
हर स्थिति में सुकून की प्रत्याशित-सी घड़ियाँ।

लक्ष्य

चित्र स्त्रोत: इंटरनेट से।

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