था एक दोस्त मस्ताना

22 6 7
                                    

था एक दोस्त मस्ताना,
समझा था उसे बहुत सयाना
हमारी दोस्ती का था क्या कहना;
पल-पल का था हमारा उठना-बैठना।

भले ही थी मेरी ज्यादा दिलचस्पी,
इस अनूठे दोस्ती में,
सीखी थी ना जाने कितनी बातें,
कुछ जुड़ी जीवन से, अनगिनत मुलाकातें।

भले ही था वह कुछ रुखा- सुखा,
बात करने की आदत नहीं थी,
शायद जीवन ने दिखाया वक्त- पूर्व ऐसा सत्य;
कि बन चुका था सारांश वो एक अनसुलझी पहेली का।

थी कई दिक्कतें झेली उसने
हार ना मानी किसी भी परिस्थिति में,
मेरी भी कुछ मदद रही होगी,
जाने या अनजाने में ।

ऐसा ना कहीं सुना होगा वार्तालाप,
विश्व के सारे भाग का था सार;
शायद इतना था हमें प्यार,
जो दोस्त से बढ़कर, भाई का भी था भाव ।

क्यों कहा उसने इस दोस्ती को 'फसाना';
माना आप को इस संबंध हेतु गलत इंसान
शायद ज्यादा उम्मीद रखी मैंने,
या कोई कारण है विरान
नहीं रहा वो अब सयाना -
था मेरा एक दोस्त मस्ताना।

                     
लक्ष्य

चित्र स्तोत्र: इंटरनेट से।

वास्तविक कविताएँजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें