सुरीतियाँ

13 2 4
                                    

समाज में बसी हैं,
ना जाने कितनी ही सुरीतियाँ।
इनके होने से व्यवस्था सुचारू है कितनी,
हैं हमारे समाज को गौरवान्वित ये करती।

दहेज एक ऐसी प्रथा
ना जाने कितनों का जीवन इसने सँवारा है।
कितने ही अभागों के लिए,
ईश्वर का जैसे यह वरदान है।

जाति व्यवस्था से सर्वोच्च कोई सोच नहीं,
आज समाज में रहना कितना सुरक्षित है।
'उच्च' जातियों का सुविधाओं पर मालिकाना हक है,
'नीच' जाति आज अत्याचार से कितने दूर हैं!

बाल-विवाह से लड़कियों का भला ही भला,
'लड़कों के क्षेत्रों' से उनका नाता ही नहीं जुड़ता।
परिवार-बच्चे, चूल्हा चौका, चारदीवारी के अनेक काम,
इन्हीं सब में मग्न रहकर रहता उन्हें औकात का ध्यान।

बेटियाँ इस समाज में हैं सबसे सुरक्षित,
संस्कारों से लैस 'ढंग' के कपड़े हैं पहनती।
जन्म लेते ही जो हैं 'ढक' दी जाती,
बलात्कार में देखो आ गई है भारी कमी।

कुछ सुरीतियों का 'बेवकूफों' द्वारा प्रतिबंधित करना,
हमारे प्यारे समाज के विकास को धीमा है कर गया।
सती प्रथा थी तो विधवा शब्द का कोई वजूद ना था,
आज वे बेशर्म 'नवजीवन' से शापित हैं।

कौन हैं वे अज्ञानी,
जो इस 'अग्रणी' समाज को बदलना चाहते हैं?
कौन हैं वे रूढ़िवादी,
जो इन 'सुरीतियों' को 'कुरीतियाँ' कहते हैं?

लक्ष्य

चित्र स्त्रोत: इंटरनेट से।

वास्तविक कविताएँजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें