दिन-ब-दिन बीत गए
उन्हें तनिक भर मेरी याद ना आई।
माना कि वे व्यस्त हैं मगर,
उनकी ये गुमशुदगी मुझे जरा भी रास ना आई।जो बातें तब ना हो पाई थी,
वो बातें आज कर लेने की इच्छा है।
जो गुफ्तगू की आस अधुरी रह गई थी,
उसे आज पूरा कर लेने की तमन्ना है।इन जद्दोजहत से भरे लम्हों में
कुछ वक्त हमारा भी हो।
शब्दों के इस अकाल में
कुछ बातें हमारी भी हो।पर क्यों? क्यों हमें ऐसी इच्छा है?
क्योंकि वे हुस्न की परिभाषा हैं,
सौंदर्य की प्रतिमा हैं।
क्योंकि वे हास्य का पर्यायी हैं,
सुकून की झलक हैं।यूँ तो झरोखों से झाँकती तो हैं हमें,
कभी दस्तक भी दे दिया करें।
मन-ही-मन कुछ बोलती तो हैं हमें,
कभी दिल तक भी बात पहुँचा दिया करें।यूँ तो कहती हैं बातें होती तो हैं,
पर बातें रुक-सी जाया करती हैं।
नैनों से नैन मिलते तो हैं,
पर सिलसिले थम-से जाया करते हैं।बराबर तो आते हैं हम
उनके दिल में दस्तक देने;
कभी वे भी गुस्ताखी तो करें
करने की बात दिल से मेरे।अब यह ना पूछ लें हमसे
कि दिल से बातें कैसे होती है।
ऐसा लगेगा मानो कोई अप्सरा
पूछ रही हो कि सुंदरता क्या चीज है।हमें दिलचस्पी उनके रूप में नहीं
प्रेम हमें उनके रूह से है।
एक मौका देके देख तो लें,
उन्हें इश्क से वाकिफ़ कराने की ललक इस नाचीज़ में है।क्योंकि बहुत जतन के बाद मैंने दिल के दरवाजे खोले हैं।
बहुत कोशिशों के बाद एक आखिरी कदम उठाने की सोची है।
पर फिर वो सब कुछ एक तरफा ही है,
फिर से बस मेरा दिल सूना-सूना है।ना उन्हें भूल पाएँगे, ना ही हम आगे बढ़ पाएँगे।
दुनिया चाहे इसे एक तरफा कहे:
जैसे पुष्प अपने रस से मधुमक्खी को प्रेरित करती रहती है।
मेरी बदनसीबी और और उनके नजरअंदाज करने के बीच; एक अनकही अनजानी मैत्री है।मैं प्रेम में हारा हुआ एक कवि हूँ,
जिसके हर शब्द में उसकी बेबसी है।
मैं वो अधुरी कहानी हूँ,
जिसका अंत इस जनम में मुमकीन नहीं है...लक्ष्य
चित्र स्त्रोत: इंटरनेट से।
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वास्तविक कविताएँ
Poesíaनमस्कार ! मैं लक्ष्य हूँ। मैं एक MBBS छात्र हूँ।😌 यह मेरे हिंदी दीर्घ और लघु कविताओं का संकलन है।😃 मैंने नौवीं कक्षा से कविताएँ लिखना शुरू किया और उन्हें फेसबुक पर डालता था। कई सुझावों के मद्देनज़र मैंने अपने ख़यालों को एक अलग मंच देने का निर्णय ल...