हाँफती हुई एक दिन मेरे गृह के समक्ष आई गौमाता ।
अश्रु बहाती एक वृक्ष के तले बैठ गई गौमाता।
याद आई माँ की सीख, जब भी आए गौमाता
सामने झुक, पैर छू, आशीष हमेशा लेना उनका।गया मैं गौ के करीब, थी उनकी गर्दन में मोटी रस्सी की लकीर।
झुका मैं, शिश टेककर पैर छूने हाथ बढ़ाए
किंतु किए गौ ने पैर पीछे, मुख फेर लिया अन्य दिशा में।
अचंभित रह गया मैं, सोचा अत्यंत भूखी है।
लाया दो रोटी 'चुराकर' घर से, मुख के सामने रख दी।
गौ वहाँ से उठ गई, चलने को हो गई तैयार।"रूको गौमाता, है कोई मेरी भूल तो क्षमा करो;
बिना आशीष दिए, रोटी छोड़, यूँ मुख फेर ना जाओ।"
गौ मुड़ी पुनः मेरी ओर, दर्दभरी निगाहों से देखा मेरी ओर;
"मत छुओ मेरे पैर, कल उन्हीं को तुम काटोगे;
आज मेरी पुंछ अपने मस्तक पर सहलाते हो, कल उसी को मुझसे अलग कर दोगे।
आज मेरे मस्तिष्क को प्रणाम करते हो, कल उसी की चढ़ा दोगे बलि,
मत दो मुझे रोटी, क्योंकि मुझे ज्ञात नहीं वह खाकर मैं जिउँगी या नहीं।"रुदन के भाव से सराबोर, कहा मैंने रुँघकर;
"अपने बालक पर यह कैसा आरोप माँ;
तुम्हारी हानि सोचने से पहले मृत्यु हो जाए मुझे माँ
ऋणी हूँ मैं तुम्हारा, पीकर सुधा पवित्र तुम्हारी,
बताओ कारण अपने दुःख का, मैं दूर करुँगा परेशानी तुम्हारी।""मुझे मारने वाले इंसानों से पूछो,
क्या कमी रही मेरी ममता में, जो मेरी खाल उधेड़ दी जाती है;
अपने बछड़ो को भूखा रखकर, विश्व को दूध देने की;
क्यों इतनी बड़ी सजा मुझे दी जाती है।"निकल पड़ा मैं इस समस्या का हल खोजने;
मिला रास्ते में एक मियाँ, जिससे पूछा मैंने--
"स्तनपान कराकर आपको खड़ा करनेवाली,
आपकी माँ को क्या आप पकाकर खाते हैं ?
यदि आप के अन्य बंधु गौ पूजते हैं,
तो क्यों न आप गौ का सम्मान करते हैं?"तिस पर बोले मियाँ-- "मेरी क्या गलती बच्चे,
जी पर किसका ज़ोर है, तू मत मुझे सिखा
तेरे भी कुछ बांधव हैं, जो गौ का सेवन करते हैं;
खुला बाजार है जब, क्योंकर हमें चिंता करनी है।"बाजार में यदि न हो बिक्री, तब सुलझ जाएगी यह पहेली,
सोचते-सोचते बुचड़खाने पहुँचा, रख मुख पर रूमाल मेरी;
"ऐ गौ- हत्यारे, क्यों लोगों को खराब आदत डालता है,
जब जानता है गौ माता है, तब क्यों यह जुर्म करता है ?"
वह बोला--"जुर्म कोई चीज तब तक नहीं, जब तक उस पर रोक न हो,
तस्कर खुलेआम हैं बेचते गौ, तो हमें क्यों चिंता करनी है।"तस्करी यदि न हो, तब जड़ ही खत्म इस परेशानी की,
निकला मैं तस्कर की खोज में, मिल उससे पूछा मैंने -
"तुम ही हो कारण गौ की दुर्दशा का ,
क्या अपनी माँ को भी कभी तस्करी में झोंक दोगे भला ?"
जारी है...(To be contd.)अगले भाग के लिए,
३० व्यूज् की है दरकार,
तस्कर का क्या जवाब होगा?
सोचिए क्या हो सकते हैं कारण
गौ माता के बदहाली का।वोट और कमेंट करें।
भाग 2 में क्या इस समस्या का समाधान होगा?
व्यक्त कीजिए अपने विचारों को।।-------------- गौ (भाग २) आगे प्रकाशित है।------------
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वास्तविक कविताएँ
Poetryनमस्कार ! मैं लक्ष्य हूँ। मैं एक MBBS छात्र हूँ।😌 यह मेरे हिंदी दीर्घ और लघु कविताओं का संकलन है।😃 मैंने नौवीं कक्षा से कविताएँ लिखना शुरू किया और उन्हें फेसबुक पर डालता था। कई सुझावों के मद्देनज़र मैंने अपने ख़यालों को एक अलग मंच देने का निर्णय ल...