एक ना दिखने वाले जंतु ने
एक हर तरफ फैली महामारी ने
अच्छे-खासे चलते जीवन को
यादों में बदल दिया, विडंबना तो देखो।इतने महीने चारदीवारी में बीत गए
अब बीते लम्हों की याद सताने लगी हैं।
याद आते हैं वे पल, हर पल
दुःख होता है उनके ना होने का, हर पलयाद आता है वो सुबह का उठना
अलार्म बजने से पहले माँ का उठा देना।
अधजगे हालत में मुँह धोना, नहाना
नाश्ता करने में कंजूसी करना।पर अब तो ना सुबह की सुध है ना ही अर्धरात्री की
ना कोई अलार्म है ना इच्छा जागने की।
ना नाश्ते का कोई वक्त है ना दोपहर के खाने का
सुध अगर किसी की है तो वो बीते लम्हों की....याद आती है वो तड़के सुबह के लेक्चर की,
पलकों से होने वाली उस कुश्ती की।
कान कितने उतावले होते थे सुनने को हर बात
पर आँखों को रास आती थी सिर्फ नींद की पुकार ।आज ना ही कोई शिक्षक है ना आसपास कोई छात्र
एक यंत्र है उसमें से निकलती हुई एक ध्वनि;
कानों में ईयरफोन ने डेरा जमा लिया है,
पर उन्हें याद आती है तो बस बीते लम्हों की....याद आता है वो पुस्तकालय
पढ़ाई कम दोस्तों से गुफ़्तगू का आलम
बिन वजह गलियारों में टहलना
आज किताबें तो हैं पर उनके पन्नों के बीच की 'तु तु मैं मैं' कहाँ?याद आता है वो वॉर्ड के तरफ का रास्ता
जिस पर रोज एक नए उमंग के साथ अग्रसर होते थे।
रोगों से त्रस्त वे परीक्षक
याद आती है उनसे की गई वो सारी बातें, वो सारी जाँच प्रक्रियाएँ।पर अब ना कोई परीक्षा है ना कोई परीक्षक है
बस पुस्तकों का एक ढेर है
कितना मस्तिष्क में जा रहा कोई खबर नहीं,
कुछ मन में है तो बस यादें उन लम्हों की।याद आता है मध्य काल का वो अड्डा
जब सारे यार एक साथ लंच करते थे।
कुछ अपनी सुनाते थे, ज्यादा औरों की ही सुन लेते थे:
वो हँसी ठिठोलियाँ, वो मदमस्त अठखेलियाँ...पर अब वे दोस्त यंत्रपटल पर ही मिलते हैं,
बातों की जगह अब संदेशों ने ले ली है।
जो पूरे दिन के साथी थे
अब पल पल बात करने को बेताब पड़े रहते हैं...याद आता है वो थके हारे घर लौटना
खाली टिफन देख कर माँ का वो मुस्कुराना।
मुँह हाथ धोकर सुगम नाश्ते की सुगंध में खो जाना,
याद आता है थकान से खेलकर पढ़ने बैठ जाना.....अब ना ही कोई शाम है ना कोई रात
कब सोने का वक्त हो जाए नहीं हो पाता ज्ञात
याद आती है वो मीठी नींद जो दिन के अंत में आती थी,
अब उन लम्हों की यादों में नींद है कहाँ?
बस छत पे घुमता एक पंखा है, सपने ना जाने हैं कहाँ?लक्ष्य
चित्र स्रोत: इंटरनेट से।
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वास्तविक कविताएँ
Poetryनमस्कार ! मैं लक्ष्य हूँ। मैं एक MBBS छात्र हूँ।😌 यह मेरे हिंदी दीर्घ और लघु कविताओं का संकलन है।😃 मैंने नौवीं कक्षा से कविताएँ लिखना शुरू किया और उन्हें फेसबुक पर डालता था। कई सुझावों के मद्देनज़र मैंने अपने ख़यालों को एक अलग मंच देने का निर्णय ल...