छोड़ जाने को आ

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आधे रास्ते ही आ
यूँ दूर तो ना जा
आ--
फिर से मुझे छोड़ जाने को आ...

कभी किसी कशमकश से तू रुठ जा
बात ना कर कुछ देर मायूस हो जा
पर फिर भी दूर ना जा
आ--
मुझे फिर से छोड़ जाने को आ...

मेरी हर बात को ना कह जा
मत सुन मैं जो कहुँ अनसुना कर जा
पर फिर भी दूर तो ना जा
आ--
मुझे फिर से छोड़ जाने को आ...

ऐसी कोई बात नहीं तुझमें जो मुझे रास ना आए
तुझसे मोहब्बत की मैंने तेरे साथ ही रहने,
ईरादा नहीं मेरा पर फिर भी अगर दिल दुखा दिया तेरा...
दूर ना जा बस--
फिर से मुझे छोड़ जाने को आ...

जो तू ना समझे कोई बात
पुछ ले ज़रा।
गुस्ताखी हो जाए मुझसे कुछ
कोई और सज़ा दे दे ना ज़रा,
पर दूर ना जा--
आ--
मुझे फिर से छोड़ जाने को आ...

लक्ष्य

चित्र स्त्रोत: इंस्टाग्राम से।

क/टि: यह कविता अहमद फ़राज के चित्र में दर्शाए गए उन अल्फ़ाज से प्रेरित है। 🤗

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