कोविड और संजीदगी

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कोविड पर भाषण देने है मुझे बुलाया गया
तीन मुद्दों पर बोलने पर है मैंने विचार किया
एहतियात, टीका और भविष्य पर है चर्चा होनी
श्रोताओं के बीच मगर है कोई और मुद्दे की ध्वनि...

मैं बात करुँ एहतियात की,
लोगों की दिलचस्पी कम-सी लगती है।
मगन हैं वो करने में गुप्त बातों की गुफ़्तगू-
सोचा मैंने कैसे उनका ध्यान अपनी ओर लाउँ...

मैं मास्क उतार कर नहीं बोल रहा,
क्योंकि है मेरी भी कुछ जिम्मेदारी।
साल भर से भी ज्यादा थक गए बोलते-बोलते
पर जाबांजों के मस्तिष्क में दो बातें नहीं जा रहीं...

मैं मास्क टुड्डी पे सरकाता नहीं,
टुड्डी मेरी भरी है वायरस से।
जो सरका दिया तो वायरस उछलेगा मास्क पर-
वापस मुँह पर लेके संक्रमण होगा मुझे...

है रह सकता वायरस त्वचा पर कई घंटे
इसलिए समय-समय पर हाथों को धोएँ।
पर आलिंगन का दौर है जनाब-
बेवक्त कातिलाना मोहब्बत दर्शाने में है सब लगे हुए...

समिति ने एक 'टाईल' की दूरी पर कुर्सियाँ थी रखी हुई
जितनी थी उससे ज्यादा बाहर से हैं लाई गयीं।
दूरी उनके बीच कम कर दी गई चलो सही!
पर बातें रूमानी मास्क नाक के नीचे सरका के ही करनी है!
तिस पर एक-दूसरे के करीब झुक के गुफ़्तगू भी होनी है!
क्या व्यवस्थित प्राणी हैं हम-
हमें सब की परवाह करनी बखूबी आती है...

पानीपूरी वाले से कभी पूछा नहीं पानी किस नाले का है,
टीके के प्रति शक्की नज़रिया काफ़ी ज्यादा पक्किया है।
अरे जीवन से क्या ख़ाक प्यार है?
बाढ़ आई है और नौका से छत्तीस का आँकड़ा है...

जागो सब कोई अब तो जागो,
जो टीका मिल रहा है वो तो ले लो।
जो ना बढ़ेगी टीके की गति,
नए-नए रुपों में वायरस खेलेगा होली...

अफ़वाहों से जो है इतना लगाव, तभी तो धंधे हैं इतने बढ़ रहे,
दस वर्षों से मानव शरीर को पढ़ के कोई दे रहा है गंभीर संदेश।
जिन्होंने आखिरी किताब कब पलती मालूम नहीं पर लगते 'ग्रेट'
'कोरोनिल' और 'श्वासवारी वती' के चढ़ गई संजीदगी सब की भेंट...

हम डॉक्टर अब हैं थक चुके
जीवन बचाने में हैं अब बहुत ही अड़चनें।
जो वे तीन एहतियात नहीं हैं ले रहे,
समझो उनके हाथ हैं 'तीन' के खून से रंगे हुए...

समझ थोड़ी रखिए एक मौका फ़िर आएगा।
जीवन बचा रहा तो एक नया सुर्योदय अवश्य होगा,
जब जश्न की ना कमी, उत्सवों की लहर-सी होगी;
आज बचाइए जान अपनी और औरों की-
कल आलिंगन करने को पूरा विश्व हमारे सामने होगा।

लक्ष्य

चित्र स्त्रोत: स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार।

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