इश्क़ मेरा....

242 18 3
                                    

@@@@@@@

इश्क़ मेरा हिकायत-ए-मग़्मूम तो नहीं?
मेरी जां हमारा इश्क़ कोई जुल्म तो नहीं?

यूं ख़फ़ा-ख़फ़ा रहते हो आजकल जो तुम
तुम्हारे इश्क़ का कोई दूसरा मख़दूम तो नहीं?

तुम्हारी इक निगाह को भी हम तरस जाएं
हमारे इश्क़ का इतना गिरा मक़्सूम तो नहीं?

तू मशहूर इतना के मुझे तो खौफ है अब
तेरे पीछे मेरे रक़ीबों का हुजूम तो नहीं?

माना क़तार लम्बी है तेरे चाहने वालों की
तू बता हम इस तादाद में मादूम तो नहीं?

Aria

तसव्वुर (Urdu Poetry)जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें