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इश्क़ मेरा हिकायत-ए-मग़्मूम तो नहीं?
मेरी जां हमारा इश्क़ कोई जुल्म तो नहीं?यूं ख़फ़ा-ख़फ़ा रहते हो आजकल जो तुम
तुम्हारे इश्क़ का कोई दूसरा मख़दूम तो नहीं?तुम्हारी इक निगाह को भी हम तरस जाएं
हमारे इश्क़ का इतना गिरा मक़्सूम तो नहीं?तू मशहूर इतना के मुझे तो खौफ है अब
तेरे पीछे मेरे रक़ीबों का हुजूम तो नहीं?माना क़तार लम्बी है तेरे चाहने वालों की
तू बता हम इस तादाद में मादूम तो नहीं?Aria
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तसव्वुर (Urdu Poetry)
Poetryकिस गुल से हुस्न टपकता है किस खुश्ब की रवानी रहती है तेरे नर्म होंठो की अरक हर गुलशन की कहानी कहती है ........ (जब सहबा ए कुहन....) और जबसे सुना है उनके खयालात हमारी कब्र को लेकर जनाब! हमें तो अब मरने से भी मोहब्बत हो गई ...... (मोहब्बत हो गई...) इ...