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जब सहबा-ए-कुहन सागर-ए-नौ में टपकती है
भूली बिछड़ी यादें भी सावन जैसी बरसती हैंगर्म जोश तेरी निगाहें जब बर्फ सी ठंडी पड़ती है
बज़्म-ए-खामोशी भी बर्क बराबर कड़कती हैकिस गुल से हुस्न टपकता है किस खुश्ब की रवानी रहती है
तेरे नर्म होंठो की अरक हर गुलशन की कहानी कहती हैतेरी नजरों से सोज बरसता है तेरी पायल साज सी बजती है
तेरे घर के दरीचों पे मेरी नजर आज भी रहती हैहमारे इश्क के फसानो से जब महफिलें सज उठती है
तब सहबा-ए-कुहन सागर-ए-नौ में टपकती हैQuoted by-- Aria
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तसव्वुर (Urdu Poetry)
Poesíaकिस गुल से हुस्न टपकता है किस खुश्ब की रवानी रहती है तेरे नर्म होंठो की अरक हर गुलशन की कहानी कहती है ........ (जब सहबा ए कुहन....) और जबसे सुना है उनके खयालात हमारी कब्र को लेकर जनाब! हमें तो अब मरने से भी मोहब्बत हो गई ...... (मोहब्बत हो गई...) इ...