भटके दर बदर

219 10 2
                                    

नफरत ए इश्क दिल में बैठ गया है ऐसे
के ख्वाहिश ए इश्क दिल में फिर उठा ही नहीं
नब्ज़ नसों से बिछड़ गया है ऐसे
जैसे नसों में कभी था ही नहीं

भटके दर बदर, तेरे बाद ऐ सनम
बिछड़े गम नहीं, दर्द बढ़ता गया
क्या फरक क्या फिकर, सब दुआ बेअसर
कम हुआ गम नही, और बढ़ता गया

जब उठे हाथ मेरे खुदा की दुआ में
झुकाकर नजर मैने खुदा से
तुझे भूलने की दुआ मांगी है
दिए जख्म मुझको जो तूने खुशी से
तुझे भी मिले, तेरी खुदी से
मैंने खुदा से ये दुआ मांगी है

तेरे बाद ऐ हसीं, कुछ रहा अब नहीं
तेरे घर की गली, यूं मैं तकता रहा
मेरे दर्द की जमीं की फिर तह ना लगी
कम हुआ गम नहीं, और बढ़ता गया

मेरे दर्द की जमीं की सतह ना मिली
तुझे भूलने की क्यूं वजह ना मिलीं?
मैंने खुदा की रज़ा मांगी है
मेरी मोहब्बत में क्या थी कमी
क्या तेरे आंख में भी है वो नमी?
तेरे रूख्सती की वजह मांगी है

वजह मांगी है, कजा मांगी है
दुआ में खुदा से तेरे खातिर सजा मांगी है.....

तसव्वुर (Urdu Poetry)जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें