ना मुलाक़ात

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ना मुलाक़ात होती ना दीदार होता
ना तुम मिलते ना हमें प्यार होता

इश्क़ या आवारगी, जुनून की एक हद तो होती
ज़रा सा चैन होता ज़रा क़रार होता

ज़रा सा इल्म होता, क्या शाम क्या सहर
ज़रा ज़रा सी बात पे दिल बेक़रार होता

खामोशियों में शोर, महाफिलें तन्हा सी न होती
मेरे हिस्से में भी सुकून का एक अपना क़िरदार होता

इनायत होती अगर ना ही मिलते तुम
बग़ैर तेरे, दिल इतना ना लाचार होता

 
Aria
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इनायत- favour

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