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टूट चुकी हूं मैं अब कितना और?
रहने दे ना अब कितना और?बेबाक सी थी मैं अब खामोश हो गई
हलक से ज्यादा तो धड़कनों की शोर हो गई
तन्हाइयों में कुछ इस तरह लिपट गई हूं मैं
के जाम से ज्यादा तो तन्हाइयों में मदहोश हो गईइन तन्हाइयों में जीना अब कितना और?
रहने दे ना अब कितना और?मैं गुम क्यूं हूं? लोग पूछते भी अब नहीं
मैं चुप क्यूं हूं? लोग पूछते भी अब नहीं
ये रवैया सरे रात नही थामा मैने
ये रवैया थामा ही क्यूं? लोग पूछते भी अब नहींइस रवैए से गुजरना अब कितना और?
रहने दे ना अब कितना और?झूठा ही सही एहतराम ही रख लेते
मेरे हमदर्द होने का किरदार ही रख लेते
इख्तियार में तो लोग बेवफा भी रख लेते हैं
मेरी वफाई का शबब इख्तियार में रख लेतेये इख्तियार भी तन्हा अब कितना और?
रहने दे ना अब कितना और?Quoted by-- Aria
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तसव्वुर (Urdu Poetry)
Poesíaकिस गुल से हुस्न टपकता है किस खुश्ब की रवानी रहती है तेरे नर्म होंठो की अरक हर गुलशन की कहानी कहती है ........ (जब सहबा ए कुहन....) और जबसे सुना है उनके खयालात हमारी कब्र को लेकर जनाब! हमें तो अब मरने से भी मोहब्बत हो गई ...... (मोहब्बत हो गई...) इ...