अब कितना और

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टूट चुकी हूं मैं अब कितना और?
रहने दे ना अब कितना और?

बेबाक सी थी मैं अब खामोश हो गई
हलक से ज्यादा तो धड़कनों की शोर हो गई
तन्हाइयों में कुछ इस तरह लिपट गई हूं मैं
के जाम से ज्यादा तो तन्हाइयों में मदहोश हो गई

इन तन्हाइयों में जीना अब कितना और?
रहने दे ना अब कितना और?

मैं गुम क्यूं हूं? लोग पूछते भी अब नहीं
मैं चुप क्यूं हूं? लोग पूछते भी अब नहीं
ये रवैया सरे रात नही थामा मैने
ये रवैया थामा ही क्यूं? लोग पूछते भी अब नहीं

इस रवैए से गुजरना अब कितना और?
रहने दे ना अब कितना और?

झूठा ही सही एहतराम ही रख लेते
मेरे हमदर्द होने का किरदार ही रख लेते
इख्तियार में तो लोग बेवफा भी रख लेते हैं
मेरी वफाई का शबब इख्तियार में रख लेते

ये इख्तियार भी तन्हा अब कितना और?
रहने दे ना अब कितना और?

Quoted by-- Aria

तसव्वुर (Urdu Poetry)जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें