Untitled Part 20

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एक  घंटे  बाद  आयशा  अपने  कमरे  से  बाहर  हॉल  में  आई। उस  समय  साक्षी  किचन  में  थी,हॉल  में  यश  सोफे  पर  बैठा  खिलौनों  से  खेल  रहा  था। आयशा  भी  यश  के  साथ  खेलने  लगी। तभी  साक्षी  किचन  से  निकल  कर  हॉल  में  आई।

“तुम  कुछ  खाओगी?” साक्षी  ने  पूछा।

“नही  दीदी,मुझे  मेरे  घर  छोड़  दीजिए,” आयशा  ने  कहा।

“समीर  बाहर  गार्डेन  में  है,तुम  उसके  साथ  चली  जाओ,” साक्षी  ने  कहा।

आयशा  बाहर  गार्डेन  में  गयी,समीर  की  नज़रें  जब  उस  पर  पड़ी  तो  उसकी  नज़रें  आयशा  पर  ही  टिक  गयी। आयशा  ने  रेड  टॉप  और  ब्लू  जीन्स  पहनी  थी।

“समीर,मुझे  घर  छोड़  दो,” आयशा  ने  कहा।

“ठीक  है,” समीर  ने  उससे  नज़रें  बिना  हटाए  ही  कहा।

आयशा  बिना  कुछ  कहे  वहीं  थोड़ी  ही  दूरी  पर  खड़ी  समीर  की  गाड़ी  में  जा  कर  बैठ  गयी। समीर  भी  कुछ  नही  बोला  और  गाड़ी  में  बैठ  गया। करीब  40  मिनट  में  हाइवे  पर  आ  गये  इस  40  मिनट  में  दोनों  ने  एक  दूसरे  से  कोई  बात  नही  की।

“बहुत  सुंदर  दिख  रही  हो,” समीर  ने  बिना  आयशा  की  ओर  देखे  ही  कहा।

आयशा  कुछ  नही  बोली  बस  नीचे  की  ओर  देखने  लगी। उसे  विनय  की  याद  आ  र्ही  थी। विनय  से  वो  क्या  कहेगी,कहाँ  थी  वो  2दिन। विनय  की  हालत  इतनी  तो  सुधर  गयी  थी  की  वो  बोल  सकता  था  सिर्फ़  उसके  पैर  का  फ्रैक्चर  ठीक  नही  हुआ  था। उसे  रुपयों    का  इंतज़ाम  भी  करना  था। आयशा  की  आँखों  से  कब  आँसू  बहने  लगे  उसे  पता  ही  नही  चला।

“तुम  रो  क्यों  रही  हो?” समीर  ने  आयशा  से  पूछा।

आयशा  कुछ  नही  बोली  जैसे  उसने  कुछ  सुना  ही  नही। समीर  ने  फिर  पूछा  इस  बार  समीर  ने  अपना  हाथ  उसके  हाथ  पर  रख  दिया  था। आयशा  ने  कोई  प्रतिक्रिया  नही  की  सिर्फ़  नज़रें  उठा  कर  समीर  की  ओर  देखा,समीर  ने  अपना  हाथ  हटा  लिया। आयशा  कुछ  देर  समीर  को  इसी  तरह  देखती  रही  लेकिन  कुछ  कहा  नही। थोड़ी  देर  बाद  उसने  अपनी  नज़रें  झुका  ली।

दूरियाँ (Dooriyan) #wattys2017जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें