रात के 8 बज रहे थे, विनय संध्या को सुलाने के बाद टी.वी. देख रहा था। तभी फोन की बेल बजी।
“हैलो,”विनय ने फोन रिसीव करते हुए बोला।
“हैलो,”दूसरी ओर से आयशा की आवाज़ आई।
“आयशा………तुम,” विनय ने चौंकाते हुए कहा।
“मुझे कुछ पैसों की ज़रूरत है।”
“तुम हो कहाँ?”
“आगरा में।”
“वापस आ जाओ।”
‘मैं ज़्यादा बात नही कर सकती। पैसे कब तक दे दोगे।”
“कल………। हम मिलेंगे कहाँ?”
“रेलवे स्टेशन के पास।”
“मैं अपनी कार से रहूँगा।”
“तो क्या हुआ?”आयशा ने कहा और फोन रख दिया।
विनय ने फिर फोन किया पर किसी ने रिसीव नही किया।
अगले दिन विनय संध्या को अपने घर छोड़ कर आगरा चला गया। रेलवे स्टेशन के पास बताई जगह पर आयशा पहले से ही खड़ी थी। हारे-लाल रंग का सूट पहना हुआ था उसने। बहुत साधारण सी लग रही थी,पहले जैसी सुंदरता नही दिख रही थी। हल्की-हल्की ठंडक थी फिर भी आयशा ने कोई गर्म कपड़े नही पहने।
“कैसे हो?” आयशा ने विनय के कार से बाहर निकलते ही पूछा।
“अच्छा हूँ और तुम?”
“मैं भी………………। मेरी नन्ह-सी जान कैसी है?”
“वो भी अच्छी है………। तुम्हे बहुत याद करती है,” विनय ने कहा।
कुछ देर दोनों शांत रहे शायद वो आपस में बात करने के लिए शब्द ढूँढ रहे थे।
“अपने घर नही ले चलोगी।”
“क्यों नही?” आयशा ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा।
दोनों कार से चल दिए। विनय कार चला रहा था और आयशा उसके बगल में बैठी थी। विनय ने अपना एक हाथ आयशा के हाथ पर रख दिया,आयशा ने देखा और फिर नज़रें हटा लीं।
“तुम कुछ बोल क्यों नही रही हो?” विनय ने पूछा।
आयशा ने विनय की ओर देखा फिर गहरी सांस भारती हुई बोली-“घर पहुँच कर बात करते हैं।”
“तुम्हारे बच्चे का क्या हुआ?” विनय ने पूछा।
“गिर गया।”
“गिर…………। कैसे?”
“सीढ़ियों से फिसल गयी थी,पैर में भी चोट तभी लगी थी,” आयशा ने कहा।
विनय का ध्यान उसके पैर की ओर गया,पट्टी बँधी थी और हल्की सूजन भी थी। तब तक घर आ गया।
“तुम बैठो यहाँ बैठो,मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूँ,” आयशा ने ज़मीन पर एक चादर बिछाते हुए कहा।
“तुम ऐसी जगह रहती हो,” विनय ने घर की हालत देखते हुए कहा।
“क्यों क्या हुआ है?”
“कुछ नही,” विनय ने कहा और एक किनारे दीवारा का सहारा लेकर बैठ गया।
“तुम्हारा बिजनेस कैसा चल रहा है?” आयशा ने चाय पकड़ाते हुए पूछा।
“बहुत अच्छा…………………अब मैं पार्ट्नरशिप में नही हूँ,” विनय ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा।
“मैंने तुम्हे पैसों के लिए फोन किया था,मुझे 2000 रुपयों की ज़रूरत है।”
“क्यों?ऐसी क्या ज़रूरत पड़ गयी जो मुझ से……………।”
“जहाँ काम करती हूँ,वहाँ मुझसे कुछ समान टूट गया है बस उसी लिए………………। मैं तुमसे कहती ना पर मेरी तबीयत नही ठीक है और मैं ज़्यादा काम नही कर सकती हूँ इसलिए कहा। वो मुझे कोई ग़लती होने पर बहुत बुरा-भला कहती हैं कई बार तो तुम्हारे बारे में भी कहने लगती जो मुझे अच्छा नही लगता है।”
“वहाँ काम क्यों नही छोड़ देती?”
“काम कम रहता है और पैसा भी ठीक मिल जाता है………फिर इतनी जल्दी कहीं और काम भी तो नही मिल जाएगा।”
“तुम्हे ये सब करने की ज़रूरत ही क्या है?पढ़ी-लिखी हो किसी भी जगह रिसेप्सनिस्ट…की जॉब मिल जाएगी तुम्हें,तुम कर भी चुकी हो फिर क्यों इस तरह से अपनी जिंदगी जी रही हो?”विनय ने कहा।
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दूरियाँ (Dooriyan) #wattys2017
Romanceकुछ हो ना हो पर रिश्तों को निभाने के लिए जिन्दगी में प्यार होना ज़रूरी है। पर क्या सच में? अगर ऐसा है तो फिर आज प्यार से जोड़े गये रिश्ते क्यों टूटते हैं?क्यों अधिकतर लोग नयी उम्र में जिससे प्यार करते हैं, शादी के बाद उससे रिश्ता तोड़ लेते हैं?