Untitled Part 7

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सुबह  आयशा  की  नींद  जल्दी  खुल  गयी,विनय  अभी  भी  सो  रहा  थ। वो  विनय  के  सिर  पर  हाथ  फिराने  लगी  जिससे  विनय  की  नींद  खुल  गयी।

“ये  क्या  कर  रही  हो?”विनय  ने  पूछा।

“कुछ  नही……। आपको  काम  पर  नही  जाना  है,”आयशा  ने  कहा।

“ऐसे  ही  जाऊँ,यहाँ  तो  पानी  भी  नही  है,”विनय  ने  कहा।

“यहाँ  से  थोड़ी  दूरी  पर  एक  नल  है  आप  वहाँ  हाथ-मुँह  धुल  लो………………। आप  के  पास  जो  रुपये  हैं  उनसे  बाल्टी,मग  और  कुछ  समान  लेते  आना,”आयशा  ने  कहा।

“रुपये  तुम  रख  लो  और  जो  समान  खरीदना  हो  तुम  खरीद  लेना,मुझे  आने  में  देर  हो  सकती  है।”

एक  घंटे  बाद  विनय  कम  पर  चला  गया  और  थोड़ी  देर  बाद  आयशा  ने  भी  अपने  कपड़ों  से  धूल  साफ  की  और  वो  भी  बाहर  किसी  काम  की  तलाश  में  चल  दी  दरवाजे  पे  ताला  भी  नही  लगाया,ताला  था  भी  तो  नही  जो  लगाती  ना  ही  कोई  समान  था  जो  चोरी  हो  जाता,सिवाय  झाड़ू  के।

आयशा  शाम  7  बजे  तक  घर  आ  गयी  लेकिन  विनय  रात  10  बजे  घर  आया।

“आप  बहुत  देर  से    आए  और  आपने  दिन  में  कुछ  खाया  था  या……………,” आयशा  ने  पूछा।

“खाया  था,ये  200  रुपये  रख  लो,”विनय  उसे  रुपये  पकड़ाते  हुए  कहा।

“पर  आपको  तो  महीने  के  अन्त  मे  पेमेंट  मिलनी  थी  ,फिर  ये  कैसे…?”

“मैंने  एक  जगह  मज़दूरी  भी  की  थी,और  तुम  बताओ?”विनय  ने  पूछा।

“मैं  कुछ  बर्तन,बाल्टी  ,मग  और  मोमबत्ती  ले  आई  हूँ। काम  भी  बहुत  जगह  मिल  रहा  था  पर  लोग  अच्छे  नही  मिल  रहे  थे,सब  की  नज़रें  बहुत  खराब  थीं,”आयशा  ने  कहा।

“तो  फिर,अच्छे  लोगों  का  मिलना  भी  बहुत  मुश्किल  है।”

“मैंने  एक  कॉल  सेंटर  में  बात  की  है,एक-दो  दिन  में  वो  बता  देंगे,”आयशा  ने  कहा।

दूरियाँ (Dooriyan) #wattys2017जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें