Untitled Part 41

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एक  दिन  विनय  को  सुबह  जल्दी  जाना  था  उस  दिन  वो  किसी  होटल  नही  जा  सका  और  दिन  भर  इतना  काम  था  की  उसे  वक्त  नही  मिला,रात  को  भी  उसे  आते-आते  12बज  गये  वो  होटल  नही  जा  सका  उस  दिन  उसने  कुछ  भी  नही  खाया  था।

“आज  कुछ  बनाया  है?” विनय  ने  आयशा  से  पूछा।

“नही,और  मुझसे  कोई  उम्मीद  भी  नही  करना।मैं  और  लड़कियों  की  तरह  नही  हूँ  कि  अपने  पति  के  लिए  सुबह  शाम  खाना  बनाऊँ,उनकी  सेवा  करूँ,” आयशा  ने  कहा।

“मैंने  ऐसा  तो  कभी  नही  कहा  तुमसे  की  तुम  मेरे  लिए  कुछ  करो  पर  इतना  तो  उम्मीद  कर  सकता  हूँ  कि  अगर  सुबह  से  भूखा  हूँ  तो  तुम  कुछ  बना  दोगी। अगर  मेरे  पास  समय  होता  तो  मैं  कभी  तुमसे  कुछ  नही  कहता,” विनय  ने  गुस्से  में  कहा।

आयशा  ने  विनय  को  पहली  बार  इतने  गुस्से  में  देखा  था। विनय  से  कुछ  कहने  की  उसकी  हिम्मत  नही  हुई,वो  कुछ  नही  बोली। विनय  चुप-चाप  लेट  गया  उसने  जूते  भी  नही  उतारे।

आयशा  दूसरे  कमरे  में  चली  गयी  कुछ  देर  बाद  वो  वापस  आयी,विनय  सो  रहा  था,आयशा  विनय  के  पास  आयी  उसके  जूते  उतारने  लगी। आयशा  को  इस  तरह  की  चीज़े  पसंद  नही  थी  पर  फिर  भी…।

अगले  दिन  आयशा  ने  विनय  के  काम  पर  जाने  से  पहले  खाना  बना  दिया  पर  विनय  कुछ  खाए  बिना  ही  चला  गया। आयशा  ने  खाने  के  लिए  कहा  लेकिन  विनय  ने  कोई  जवाब  नही  दिया।

आयशा  ने  शाम  को  भी  खाना  बनाया  पर  विनय  होटल  से  खा  कर  आया  था। विनय  के  इस  तरह  के  व्यवहार  को  आयशा  के  लिए  बर्दाश्त  कर  पाना  मुश्किल  था। वो  खुद  विनय  से  नही  बोलती  थी  लेकिन  जब  विनय  ने  बोलना  छोड़  दिया  तो  उसे  बुरा  लग  रहा  था। अब  उसे  विनय  की  फ़िक्र  होने  लगी  थी। बिन  कहे  ही  वो  विनय  के  हर  काम  करने  लगी  लेकिन  उसका  कोई  भी  काम  करना  बेकार  ही  था  क्यों  कि  विनय  अपना  हर  काम  खुद  ही  करता  था।

दूरियाँ (Dooriyan) #wattys2017जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें