Untitled Part 56

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विनय  आयशा  का  हाथ  पकड़  के  उसे  घसीटते  हुए  बाहर  लाया,बोला-“कैसे  नही  चलोगी?हर  समय  तुम्हारी  मनमानी  नही  चलेगी।” विनय  ने  बड़े  ही  गुस्से  में  कहा। आयशा  कुछ  नही  बोल  पाई। चुप-चाप  गाड़ी  में  बैठ  गयी।

रास्ते  में  दोनों  ने  एक-दूसरे  से  कोई  बात  नही  की। विनय  ने  एक-दो  बार  बात  करने  की  कोशिश  की  लेकिन  आयशा  नही  बोली।

डॉक्टर  ने  आयशा  को  कुछ  टेस्ट  करने  को  कहा।

रिपोर्ट  देखने  के  बाद  डॉक्टर  बोली-“आपका  ऑपरेशन  करने  की  अब  कोई  ज़रूरत  नही  है,मैं  दवा  लिख  देती  हूँ  आपको  आराम  मिल  जाएगा। ”

आयशा  ने  विनय  की  ओर  देखा  जैसे  कहने  जा  रही  हो  की  अब  कराओ  ऑपरेशन,विनय  ने  आयशा  से  अपनी  नज़रें  हटा  ली। उसका  आयशा  पर  गुस्सा  करना  बेकार  था।

हॉस्पिटल  से  लौटते  समय  आयशा  बोली-“क्या  हुआ? अब  नही  कराना  ऑपरेशन। ”

विनय  ने  ऐसे  जताया  जैसे  उसने  बात  सुनी  ही  नही।

“एक  बार  ऑपरेशन  करा  चुकी  हूँ।”

“फिर  मुझे  बताया  क्यों  नही?”

“बस  ऐसे  ही।”

विनय  ने  गाड़ी  एक  शॉपिंग  माल  के  सामने  रोकी।

“यहाँ  किस  लिए?” आयशा  ने  पूछा।

“तुम  अपने  लिए  कुछ  कपड़े  ले  लो।”

शॉपिंग  करने  के  बाद  दोनों  किसी  होटल  में  गये,वहाँ  खाना  खाया  फिर  ताजमहल  देखने  गये,उन्होने  पूरा  आगरा  घूमा  और  करीब  रात  9  बजे  वो  वापस  लौटे।

आयशा  गाड़ी  में  ही  सो  गयी  थी,विनय  ने  उसे  जगाया  नही,वो  उसे  अपनी  गोद  में  उठा  कर  घर  के  अंदर  लाया  और  लिटा  दिया। आज  आयशा  अच्छी  लग  रही  थी। विनय  कुछ  देर  तक  उसे  ही  देखता  रहा  फिर  उसने  आयशा  के  माथे  को  चूमा  और  खुद  वहीं  उसके  बगल  में  लेट  गया।

सुबह  जब  विनय  वहाँ  से  जाने  लगा  तो  उसकी  हिम्मत  नही  हो  रही  थी  की  एक  बार  आयशा  से  पूछ  ले  कि  क्या  वो  उसके  साथ  चलेगी?जानता  था  आयशा  कभी  हाँ  नही  कहेगी।

“क्या  हुआ?तुम  बहुत  खोए  हुए  हो,” आयशा  ने  पूछा।

“कुछ  नही…।”

“कुछ  तो………मुझे  छोड़  कर  जाने  का  दिल  नही  कर  रहा  है,” आयशा  ने  कहा।

“संध्या  के  दिल  में  छेद  है…………उसे  देखभाल  की  बहुत  ज़रूरत  है।”

“तुम  हो  ना  उसके  लिए।”

“आयशा  मुझसे  नही  होता,…………………। मैं  हर  पल  उसके  साथ  नही  रह  सकता  हूँ…………………। मेरे  साथ  चलो  उसे  उसकी  माँ  चाहिए।”

“मुझे  इतना  कमजोर  मत  करो  कि  मैं  तुम्हारे  बिना  टूट    जाऊँ……………।”

विनय  ने  अपने  आँसू  को  छिपाते  हुए  कहा-“कमजोर  तो  मैं  हो  गया  हूँ  तुम्हारे  बिना,अगर  संध्या  ना  होती  तो  कब  का  खुद  को  ख़त्म  कर  लिया  होता।”

“हमारी  किस्मत  में  मिलन  से  ज़्यादा  जुदाई  लिखी  है………। तो  इसमें  हम  क्या  कर  सकते  हैं?”

“आयशा,अब  तुम  यहाँ  से  कहीं  और  नही  जाओगी  और  मुझसे  वादा  करो  की  तुम्हें  कोई  भी  तकलीफ़  होगी  तो  तुम  मुझे  बोल  दोगी,” विनय  ने  आयशा  से  कहा  और  उसे  अपना  डेबिट  कार्ड  दे  दिया। “इसे  रख  लो  तुम्हारे  काम  आएगा। ”

आयशा  मना  तो  करना  चाहती  थी  पर  विनय  को  मना  नही  कर  सकी। विनय  वापस  अपने  घर  लौट  आया। कुछ  दिन  तक  तो  आयशा  के  बारे  में  ही  सोचता  रहा  फिर  धीरे-धीरे  संध्या  की  वजह  से  खुश  रहने  लगा। वो  अब  अपने  काम  पर  ध्यान  कम  और  संध्या  पर  ज़्यादा  देता, उसे  ज़रा  भी  तकलीफ़  होती  तो  वो  परेशान  हो  उठता  था। आगरा  से  वापस  लौटे  हुए  10दिन  हो  गये  थे  लेकिन  विनय  ने  एक  भी  दिन  आयशा  को  फोन  नही  किया  ना  ही  कभी  आयशा  ने।

दूरियाँ (Dooriyan) #wattys2017जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें