Untitled Part 55

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“मैं  घर  वापस  नही  गया,मुझे  आज  भी  तुम्हारे  वापस  लौटने  का  इंतजार  है,” विनय  ने  कहते  हुए  आयशा  के  माथे  को  चूम  लिया। आयशा  कुछ  नही  बोली। दोनों  बाते  करते-करते  सो  गये। उन्हे  सोए  हुए  कुछ  घंटे  के  बाद  आयशा  बार-बार  करवटें  बदलती  कई  बार  उठ  कर  बैठ  जाती  फिर  सो  जाती  उसके  पेट  में  बहुत  तेज  दर्द  हो  रहा  था। दर्द  बढ़ता  ही  जा  रहा  था।

“विनययय,बहुत  दर्द  हो  रहा  है,” आयशा  ने  विनय  को  उठाते  हुए  कहा।

“क्या  हुआ  आयशा?क्या  दर्द  हो  रहा?”

“पेट  में,बहुत  तेज  दर्द  हो  रहा,विनय  कुछ  करो  मैं  बर्दाश्त  नही  कर  सकती  हूँ।”

“आयशा  कुछ  नही  होगा,हम  हॉस्पिटल  चलते  हैं।”

“हॉस्पिटल  दूर  है  और  मुझे  कहीं  नही  जाना।वहाँ  पेनकिलर  रखी  है  मुझे  दे  दो,” आयशा  ने  इशारा  करते  हुए  कहा।

विनय  ने  उसे  दवा  दी। आयशा  की  आँखों  से  दर्द  के  कारण  आँसू  बहे  जा  रहे  थे  वो  बच्चों  की  तरह  रो  रही  थी। विनय  उसे  खुद  से  लिपटाकर  चुप  कराने  की  कोशिश  कर  रहा  था,उसे  दर्द  बर्दाश्त  करने  का  हिम्मत  दे  रहा  था। उसने  उसे  कस  कर  अपनी  बाहों  में  ज़कड़  रखा  था। आयशा  की  सांस  बहुत  तेज  चल  रही  थी।

“विनय  अभी  भी  दर्द  हो  रहा,मुझ  से  नही  सहा  जा  रहा  है,ठंड  भी  लग  रही  है,” आयशा  बड़ी  मुश्किल  से  बोल  पाई। रोने  की  वजह  से  उसकी  आवाज़  साफ  नही  निकल  रही  थी।

विनय  ने  अपना  कोट  उसे  ओढा  दिया,उसके  उपर  से  चादर  और  फिर  उसे  खुद  से  पहले  की  तरह  लिपटाकर  उसकी  पीठ  पर  हाथ  फेरने  लगा  जैसे  की  बच्चों  का  दर्द  कम  करने  के  लिए  किया  जाता  है। विनय  के  लिए  आयशा  किसी  बच्ची  से  कम  नही  थी,जितने  नखरे  उसकी  बेटी  नही  दिखाती  थी  उससे  ज़यादा  आयशा  दिखाती  थी। थोड़ी  देर  में  आयशा  को  नींद  आ  गयी। विनय  ने  उसे  खुद  से  अलग  किया  और  उसे  लिटा  दिया। आयशा  को  अभी  भी  हल्की-हल्की  ठंड  लग  रही  थी,उसे  हल्का  बुखार  भी  था। विनय  उसके  पैर  के  तलवों  को  रगड़ने  लगा  जिससे  उसे  ठंड  कम  लगे। कुछ  देर  ऐसा  करने  के  बाद  वो  आयशा  की  ओर  मुँह  करके  बगल  में  लेट  गया।

सुबह  दोनों  देर  से  उठे,पहले  आयशा  की  आँख  खुली,वो  उठने  लगी  तो  विनय  भी  जाग  गया।

“अब  ठीक  हो?” विनय  ने  अपनी  आँख  मलते  हुए  पूछा।

“हाँ,” आयशा  ने  अंगड़ाई  लेते  हुए  कहा।

“दर्द  क्यों  हो  रहा  था?”

“अभी  सो  कर  उठे  हैं……। थोड़ी  देर  बाद  बात  करते  हैं।”

विनय  शांत  हो  गया।

2 घंटे  बाद  आयशा  विनय  को  चाय  पकड़ाते  हुए  बोली-“कुछ  कह  रहे  थे। ”

“दर्द  पहली  बार  हो  रहा  था  या  पहले  भी  हो  चुका  है।”

“पहले  भी  हो  चुका  है,………। दवा  ली  है,कल  रात  को  खाना  भूल  गये  थे  इसीलिए  होने  लगा।”

“हो  क्यों  रहा  था?”

“बच्चा  गिर  गया  था  ,तब  से  कभी  भी  दर्द  होने  लगता  है।”

“तुमने  किसी  अच्छे  डॉक्टर  को  नही  दिखाया।”

“सरकारी  अस्तपाल  में  दिखाया  है,बोल  रहे  थे  की  ऑपरेशन  करना  पड़ेगा।”

“तो  तुमने  ऑपरेशन  क्यों  नही  कराया?तुम  पागल  हो  गयी  हो। क्या  कर  रही  हो ?अपनी  जिंदगी  के  साथ?” विनय  ने  थोड़ा  गुस्से  से  कहा।

“मुझे  ऑपरेशन  नही  कराना  है…………। मैं  दवा  से  ठीक  हो  जाऊंगी।”

“पागल  मत  बनो,……चलो  मेरे  साथ  किसी  अच्छे  डॉक्टर  के  पास।”

“रहने  दो,मुझे  कहीं  नही  जाना।”

“मुझे  कुछ  नही  सुनना  है,तुम  मेरे  साथ  चल  रही  हो।”

“क्यों  मेरे  पीछे  पड़े  हो?मुझे  मेरे  हाल  पर  छोड़  दो।”

“मुझे  तुम्हारी  कोई  भी  बात  नही  सुननी  है,तुम  अपनी  मनमानी  कर  चुकी  अब  जैसा  मैं  कह  रहा  हूँ  वो  करो।”

“तुम  चले  जाओ,मैं  जैसी  भी  हूँ  ठीक  हूँ।”

“मेरे  साथ  चलो।”

“नही  चलना  मुझे।

दूरियाँ (Dooriyan) #wattys2017जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें