Untitled Part 57

4.7K 258 266
                                    

विनय  और  संध्या  एक-दूसरे  के  साथ  खेल  रहे  थे  तभी  किसी  ने  डोरबेल  बजाई,संध्या  जल्दी  से  भागती  हुई  गयी  और  दरवाजा  खोला। विनय  भी  उसके  पीछे-पीछे  दरवाजे  तक  आ  गया। दरवाजे  पर  आयशा  खड़ी  थी। संध्या  उसे  देखती  ही  चिल्ला  पड़ी-“पापा,पागल  आई  पागल………”

आयशा  आश्चर्य  से  संध्या  की  ओर  देखने  लगी  उसे  हँसी  भी  आ  गयी  आख़िर  संध्या  उसे  पागल  क्यों  कह  रही  है। विनय  भी  संध्या  की  बात  पर  हँस  दिया।

आयशा  ने  झुक  कर  संध्या  को  गोद  में  उठा  लिया  और  पूछा-“मुझे  पागल  क्यों  कहा?”

“मैंने  आपकी  फोटो  देखी  है,पापा,हर  रोज  मुझे  आपकी  फोटो  दिखाते  हैं  और  कहते  है  कि  ये  पागल  की  फोटो  है,” संध्या  ने  कहा।

आयशा  विनय  की  ओर  देखने  लगी,बोली-“विनय,इसे  क्या  सिखाया  है?”दोनों  एक  साथ  हँस  दिए।

“हमेशा  के  लिए  आई  हो,”विनय  ने  पूछा।

“हाँ,” आयशा  ने  मुस्कुराते  हुए  जवाब  दिया  और  अंदर  आ  गयी।

दिन  भर  घर  में  चहल-पहल  बनी  रही। संध्या  की  वजह  से  आयशा  और  विनय  आपस  में  बैठ  कर  बात  नही  कर  सके। रात  को  संध्या  के  सोने  के  बाद  दोनों  छत  पर  बैठ  कर  बात  करने  लगे। आयशा  विनय  की  बाहों  बाहें  डालकर  बैठी  थी,उसके  कंधे  पर  सिर  रख  कर।

“तुम  आज  इतनी  सुंदर  क्यों  लग  रही  हो,” विनय  ने  बोला।

“यहाँ  आने  से  पहले  पार्लर  गयी  थी,” आयशा  ने  कहा  और  खिलखिलाकर  हँस  दी।

“वापस  आना  था  तो  उसे  दिन  मेरे  साथ  क्यों  नही  आई?”

“खुद  को  पहले  जैसा  निखारना  भी  तो  था,” आयशा  ने  कहा।

आज  सच  में  दोनो  खुश  थे,उनको  आज  कोई  भी  गम  नही  था।

“तुम  अभी  आगे  पढ़ाई  करोगी?”

“हाँ,पढ़ाई  पूरी  करूँगी  और  साथ  ही  आई.ए.एस.  की  तैयारी  भी।”

“अच्छा  है,……………………। पर  अगर  फिर  चली  गयी  तो।”

“नही  जाऊँगी…………।”

“झूठी  हो।”

“सच्ची-मुच्ची  नही  जाऊँगी,” आयशा  ने  बच्चों  की  तरह  बोला।

“पक्का……………………वादा।”

“वादा……वादा………। वादा…………,” कहते  हुए  आयशा  ने  विनय  के  गाल  को  हल्का-सा  चूम  लिया।

“बहुत  बड़ी  पागल  हो,” विनय  ने  कहा  और  खुद  हट  गया  जिससे  आयशा  गिर  गयी,आयशा  विनय  के  सहारे  बैठी  थी।

“आह,क्या  हुआ?मुझे  गिराया  क्यों?”

“बस  यूँ  ही  दिल  कर  रहा  था।”

आयशा  रोने  का  नाटक  करने  लगी,विनय  ने  उसे  उठा  कर  खुद  से  लिपटा  लिया,आयशा  उसकी  इस  हरकत  पर  बहुत  ज़ोर  से  हँसी।

“तुमने  मुझसे  कहा  था  कि  तुम  किसी  और  से  प्यार  करती  हो,कौन  है  वो?”विनय  ने  पूछा।

“तुम्हारे  लिए  कहा  था,जब  से  हमने  शादी  की  है  तभी  से  तुम्हे  प्यार  करती  हूँ  पर  तुम  कभी  समझ  ही  नही  पाए।”

“तुम  इतना  लड़ती  ही  थी  और  कुछ  समीर  की  वजह  से  नही  लगा।”

“मैं  मान  भी  तो  जाती  थी।”

“बस  यही  अच्छालगता  था,तुम  कितना  भी  गुस्सा  हो  शांत  होने  पर  सब  भूल  जाती  थी।”

“और तुम हमेशा   मुझे माफ़ कर देते।”

“तुम हो ही ऐसी कि......... ।”

“कैसी?”

“पागल।”

आयशा हल्‍का-सा मुस्कुरा दी।

“मैंने  कुछ  लिखा  है  हम  दोनों  के  लिए,” आयशा  ने  कहा।

“क्या?”

“कभी  तुम  थे  खफा,

 तो  कभी  हम  थे  जुदा।

  कभी तुम रूठे,

             तो कभी हम रूठे।

 लाख लिखीं मुक़द्दर ने जुदाई,

 मगर हम फिर भी मिले।

 क्योंकि,हम दोनों के दरमियाँ,

 बस इतनी थी दूरियाँ । ”

***********The End**************
Read DOORIYAN 2 AND GIVE YOUR VALUABLE FEEDBACK.
Hii...share your thought through comment...
Plzzz comment.
Follow me on wattpad.
My Facebook user id :- facebook.com/mohitsinghmm

🎉 आपने दूरियाँ (Dooriyan) #wattys2017 को पढ़ लिया है 🎉
दूरियाँ (Dooriyan) #wattys2017जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें