Untitled Part 48

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विनय  कुछ  कहे  बिना  कहीं  बाहर  चला  गया। दिन  भर  वो  सड़क  पर  पागलों  की  तरह  घूमता  रहा। ना  तो  उसकी  आँखों  से  आँसू  गिरते  ना  ही  वो  किसी  से  बात  करता  बस  खुद  में  ही  खोया  हुआ  रहता। आयशा  उसके  लिए  क्या  थी  उसे  आज  समझ  आ  रहा  था। 2-3 दिन  बीत  गये  पर  आयशा  वापस  नही  आयी। विनय  का  मन  घर  में  नही  लगता  था  लेकिन  संध्या  की  वजह  से  उसे  मजबूरन  घर  आना  पड़ता  था। जब  वो  विनय  से  अपनी  तोतली  आवाज़  में  पूछती-“पापा,मम्मा  कब  आएगी।” तो  विनय  के  पास  कोई  भी  जवाब  नही  होता  था। वो  कहता  भी  क्या?उस  समय  विनय  उसे  कोई  झूठी  कहानी  सुना  कर  मना  लेता  था  पर  वो  खुद  को  नही  समझा  पाता  था  खुद  अकेले  में  छत  पर  जाकर  दो  आँसू  बहा  लेता। विनय  को  जैसे  यकीन  हो  गया  था  की  इस  बार  आयशा  वापस  नही  आएगी।   

अगले  दिन  अख़बार  में  खबर  थी  की  किसी  ने  बिजनेसमैन  समीर  की  हत्या  कर  दी। हत्या  की  वजह  चोरी  या  लूट  बताई  जा  रही  थी। विनय  ने  खबर  पढ़ी  और  पेपर  को  एक  किनारे  रख  दिया। तभी  रिया  वहाँ  आई।

“भैया,मैं  घर  वापस  जा  रही  हूँ,” रिया  ने  कहा।

“क्यों?”

“मेरा  स्कूल  है,” रिया  ने  कहा।

“ठीक  है,…। पर  कुछ  देर  रूको  मैं  भी  चलता  हूँ,” विनय  ने  कहा।

विनय  8  महीने  बाद  अपने  घर  वापस  जा  रहा  था। घर  पहुँचते  ही  रिया,संध्या  को  गोद  में  लेकर  अंदर  चली  गयी,पर  विनय  दरवाजे  पे  ही  खड़ा  रहा। कुछ  देर  बाद  जब  अंदर  से  किसी  ने  आवाज़  दी  तब  जाकर  विनय  अंदर  गया। अपनी  माँ  के  पैर  छुए  और  फिर  अपने  कमरे  में  चला  गया।

उसका  कमरा  वैसा  ही  था  जैसा  वो  छोड़  कर  गया  था। कुछ  देर  बाद  उसकी  माँ  भी  उसके  कमरे  में  आई।

“अब  यहीं  रहोगे?” विनय  की  माँ  ने  पूछा।

“नही।”

“क्यों?और  तुमने  अपनी  हालत  क्या  बना  रखी  है?” विनय  की  माँ  ने  कहा।

“मम्मी,आप  चाहती  थीं  ना  कि  मैं  आयशा  को  छोड़  दूँ,लीजिए  वही  मुझे  छोड़  गयी,” विनय  ने  कहा  और  अपनी  माँ  की  गोद  में  सिर  रखकर  लेट  गया। उसकी  आँखें  नम  हो  गयी  थी।

“कहाँ  गयी  है  वो?” विनय  की  माँ  ने  पूछा।

“पता  नही।”

“कहीं  समीर  के  पास  तो  नही  गयी,” विनय  की  माँ  ने  कहा।

‘नही,समीर  की  किसी  ने  हत्या  कर  दी  है,” विनय  ने  कहा।

“तो  फिर…,” विनय  की  माँ  ने  कहा।

विनय  ने  डायरी  में  लिखी  हर  बात  अपनी  माँ  को  बता  दी  और  बोला-“वो  अभय  के  साथ  भी  नही  है। ”

“वो  उन  10  दिन  कहाँ  थी?” विनय  की  माँ  ने  पूछा।

“मुझे  नही  पता  पर  उसने  कुछ  भी  ग़लत  नही  किया  है  ना  ही  वो  कुछ  ग़लत  कर  सकती  है।”

“फिर  भी  तुम्हें  पूछना  चाहिए  था  कि  वो  कहाँ  गयी  थी।  हो  सकता  है  उस  समय  उसके  साथ  कुछ  ऐसा  हुआ  हो  जिसकी  वजह  से  आज  उसने  घर  छोड़ा,”विनय  की  माँ  ने  कहा।

“ऐसा  कुछ  होता  तो  वो  मुझे  ज़रूर  बताती,” विनय  ने  कहा।

“कुछ  बातें  बताने  के  लिए  हिम्मत  चाहिए  होती  है,जो  उसके  पास  नही  थी  ना  ही  तुमने  उसे  कभी  कुछ  कहने  की  हिम्मत  दी,” विनय  की  माँ  ने  कहा।

“अब  क्या  करूँ?मैं  उसके  बिना  नही  जी  सकता,” विनय  ने  कहा।

“उसे  ढूढों  हिम्मत  हार  कर  घर  बैठने  से  थोड़ी  ही  मिलेगी।”

“संध्या  का  क्या  होगा?वो  कैसे  रहेगी?”विनय  ने  कहा।

“उसके  लिए  हम  हैं। क्या  अब  हम  पर  इतना  भी  विश्वास  नही  रहा?”

“है,पर  वो  मेरे  बिना  नही  रह  सकती।”

“तुम  छोड़  दो  बाकी  हम  उसे  संभाल  लेंगे।”

दूरियाँ (Dooriyan) #wattys2017जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें