भाग - 30

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"हद हुई है, अब हुई है, जीने मरने दीजिये,..

.छोड़कर दुनिया मुझे वैरागी बनने दीजिए,

घूम आया हुआ फ़क़त दुनिया की सारी भीड़ में ,भीड़ ही मैं बन न जाऊ , कुछ अपना सा करने दीजिये ........."

दिल से निकली एक शायरी जो ना जाने क्यो दिल के किसी कोने से निकल आयी ,

निधि अब भी मेरी बात को ध्यान से सुन रही थी ,उसने हाथ से अपना चहरा ठिका रखा था और उसकी निगाहे मुझे ही देख रही थी ,हम टेबल में बैठे हुए थे मेरे सामने नाश्ता लगा हुआ था लेकिन मेरे अंदर के कुछ निकलने को बेताब हो रहा था,पूर्वी और निशा दिनों ही मेरी बातो को ध्यान से सुन रहे थे...

"भइया आप क्यो बैरागी बनोगे ?/"

पूर्वी का स्वाभाविक सा प्रश्न था,

"बस कुछ अब सो जाना चाहता हु ,सब कुछ छोड़कर .."

"ऐसा क्यो बोल रहे हो "निशा चौकी

"क्या बोल रहा हु"

"क्या छोड़ना चाहते हो आप ,अपनी जिम्मेदारियां ??

या हमे .."

उससे पहले की निशा की आंखों में आंसू आ जाए मैं हँस पड़ा ..

"पागल हो तुम लोग तुम्हे क्यो छोड़ने लगा मैं ,मैं तो सोच रहा था की काम बहुत हो गया,क्यो ना कही छुट्टी मनाने चले .."

देखते ही देखते मेरी दोनो परियों के चहरे खिल गए ,

"वाओ भइया यकीन नही होता की आप ऐसा बोल रहे हो "पूर्वी बोल पड़ी

"क्यो ?? क्यो यकीन नही होता "मैं चौका

"अरे आप तो वर्कोहोलिक(जिसे काम का नशा हो ) हो,मुझे लगा था की आप कभी छुट्टी नही लेते "पूर्वी फिर से बोल पड़ी लेकिन इस बार उसके होठो में मुस्कान थी ,

"तो डिसाइड करो की कहा जाना है मैं शाम को मिलता हु "

दोनो ही खुस हो गए ...

"जगह तो अच्छी है लेकिन तुम जानते हो की मैं नही जा पाऊंगी "

काजल ने फोन में ही अपनी मजबूरी जाता दी ,मैं जानता था की वो नही जा पाएगी ...इसीलिए तो ये प्लान किया था ..

"ओके जान लेकिन मैं बहनों को प्रोमिश कर चुका हु "

"ठीक है जानू ,आप सब चले जाओ 3 दिनों की ही तो बात है,ऐसे भी अभी मेरे पास बहुत सा काम है"

काजल ने एक गहरी सांस छोड़ी जैसे सच में काम से बहुत थक गई हो......



"तो तुम तैयार हो क्या सोचा तुमने "

मैं रश्मि के केबिन में बैठा था ,

"मेरा जवाब हा है ,"

मेरे जवाब से वो सुबह के फूलो की तरह से खिल गई

"थैंक्स देव "वो उठी और मेरे गले से लग गई ,पहली बात मैं उसके इतने पास था ,उसके बदन से आते हुए खुसबू ने मुझे बहुत शुकुन पहुचाया और मैं उसे एक अपनत्व का अहसास दिलाने हल्के से जकड़ लिया,ऐसा लग ही नही रहा था की वो मेरी बॉस है बल्कि ये लग रहा था की वो मेरी दोस्त है ,

"तो पेकिंग करना शुरू करो "

वो उछलते हुए बोली जैसे की बच्ची हो

"डोंट वरी वो आज ही हो जाएगा और कल से 3 दिनों के लिए मैं केशरगढ़ में "

वो बहुत ही खुस लग रही थी ,

"जानते हो ना तुम्हे किससे मिलना है ...तुम उनसे मिल चुके हो "

उसने मुझे याद दिलाया

"हा जानता हु,डॉ चुन्नीलाल तिवारी यरवादवाले ...उर्फ डॉ चुतिया से....... "

रश्मि का चहरा खिल चुका था ............


कहानी अभी जारी है...

मिलते हैं कहानी के अगले भाग में....
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