भाग - 33

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लिंग की चमड़ी में वो कोमल सा अहसास,

“आह “

मेरे मुह से अनायास ही निकले हुए शब्द थे…….

मैं अभी अर्धसुषुप्त अवस्था में था,ना जगा ही था ना ही पूरी तरह से सोया था,अपने लिंग की कसावट कुछ महसूस हो रही थी ,

ना जाने समय क्या हुआ था लेकिन मुझे लग रहा था की मैं सपनो में खोया हुआ हु,लेकिन धीरे धीरे ही मुझे अहसास हुआ की मैं जाग रहा हु ,और सचमे कोई गीली सी और कसी हुई चीज मेरे लिंग में घर्षण कर रही है…..

मेरे हाथ अनायास ही नीचे चले गए सोचा की सपने में शायद मजा आ रहा हो तो हाथो से ही शांत कर लू,

लेकिन ये क्या ????

नीचे किसी के कोमल बालो का संपर्क मेरे हाथो में हुआ ,मैं थोड़ा चौका …

“:आह”

मजे के अतिरेक में फिर के मेरे मुह से निकला…

ओह क्या अहसास था,मेरी लिंग की चमड़ी को चूसा जा रहा था,जिससे वो फैल गई थी और मेरे हाथ उस सर पर रख गए जो की उसे चूस रही थी …

मुझे याद आया की मैं कहा हु और वो कौन हो सकती है जो मुझे ये सेवा दे रही थी ,कमरे की खिड़कियों से आती हुई धूप से इतना तो समाज आ चुका था की ये मेरे जागने का समय है ,मैं अपने सर को हल्के से उठा कर देखने की कोशिस की …..

मेरे इस हलचल से निशा कोई भी समझ आ गया था की मैं जाग चुका हु,उसने अपना सर उठाया और हमारी आंखे मिली…………

जैसे नए जोड़े सुहागरात के बाद शर्मा रहे हो ,निशा के चहरे में मुझे देखते ही लाली आ गई ,लेकिन मैं उत्तेजित था,मैंने उसे प्यार से देखा और अपना हाथ उसके सर पर रखकर उसे हल्के से दबा दिया ,वो जैसे ,मेरा इशारा समझ गई थी और उसने फिर से मेरे लिंग में अपना मुह गड़ा दिया ….

कल तक जिस बहन के लिए मैं दुनिया की हर खुसी लाने को तैयार था आज वो मेरे जांघो के बीच मेरे लिंग को चूस रही थी ,...

मैं भी क्या करता असल में यही तो उसके लिये जीवन की सबसे बड़ी खुसी थी …..

जिस बहन को अपने बांहो में झुलाया था,जिसके इज्जत की पिता की तरह रक्षा करने की कसम हर रक्षाबंधन में खाई थी आज उसकी उसी इज्जत का मैं लुटेरा बन गया था,या शायद ये कहु की मैं उसकी इज्जत का मलिक था…….

जिसके कदमो में दुनिया बिछाने के ख्वाब देखे थे वो आज खुद मेरे लिए नंगी बिछी पड़ी थी ,......

गीले गीले होठो की लार मेरे लिंग से मिलकर मुझे सुकून दे रही थी और ना जाने निशा को क्या सुख दे रही थी की वो और भी जोरो से इसे चूसने लगी ,मैं अपने चरम में पहुचने वाला था…

“ओह मेरी रानी बहन चूस भइया का …….ओह नही “

मेरे मुख से ना जाने क्यो ये निकलने लगा था ..

वो इस बात के परेशान होने की बजाय और भी मस्ती में आ जाती थी और जोरो से चूसना शुरू कर देती थी ,उसके होठो से लार नीचे टपकने लगा था वही मेरी हालत और भी खराब हो रही थी ..

सांसे फूल रही थी और उसके मुख का चोदन कर रहा था,मैं अपने कमर को उठा उठा कर उसे स्वीकृति दे रहा था और वो भी अपने भाई के लिंग को पूरी तल्लीनता से चूस रही थी ,उसे देखकर तो ऐसा लग रहा था की उसे फिर खाने को कुछ ना मिलेगा और यही धरती पर एक ही चीज है जिसे चूसकर वो अपनी भूख मिटा पाएगी

वो मुझे देखकर मुस्कुराने लगी …..

मैंने उसे अपने ऊपर आने का संकेत दिया ,

वो मेरे ऊपर चढ़ गई ,

मैं उसके होठो को अपने होठो में भरकर चूसने लगा,मेरे ही वीर्य के कुछ बून्द मेरे ही होठो में आ रहे थे……

हम दोनो ही मुस्कुरा उठे ,ये वो पल था जब हमारे बीच की सभी दीवारे ढह गई ,

सेक्स तो उत्तेजना में भी हो सकता है लेकिन जब बिना किसी अवरोध और उत्तेजना के भी जिस्म मिल जाए और ग्लानि की जगह जब होठो की मुस्कुराहट ले ले तो समझो की दीवार गिर गई ……………… …



कहानी अभी जारी है...

मिलते हैं कहानी के अगले भाग में....
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