मैंने बहुत लोगों को देखा है जो अक्सर खाना छोड देते हैं चाहे दोस्तों से कोई अनबन हो या पत्नी से या घर के अन्य सदस्यों से । ऐसे लोग अपना सारा गुस्सा भोजन पर ही उतारते हैं। मैं पूछता हूँ ये कैसी समझदारी है कि गुस्से की वजह कोई और है और गुस्सा उतरता किसी और पे है। अरे ये तो आप सीधा सीधा ब्लैकमेल कर रहे हो अपने चाहने वालों को कि भाई मुझे मनाओ वरना मैं खाना नहीं खाउंगा और खुद को खत्म कर लूंगा।अब जो आपसे प्रेम करते हैं उनकी तो मजबूरी हो गयी आपको मनाना चाहे खुद आप ही गलत हों, क्योंकि वो आपको भूखा या दुखी नहीं देख सकते।अरे जब भोजन ही छोड़ देंगे जो कि आपके शरीर की ऊर्जा का स्रोत है तो आप जिन्दा कैसे रहेंगे और जब जीवित नहीं रहेंगे तो रूठेंगे किससे?
मान लो कि आप फिर भी जिन्दा रहते हो लेकिन चार दिन से आपने जो भोजन न करके शरीर को नुकसान पहुँचाया है उस क्षति की भरपाई कौन करेगा?
फिर पता चला कि पाँचवे दिन जिस इंसान से आप रूठे थे,उसने माफी माँग के या किसी तरह आपको मना लिया
तो आप खुद सोचिये जब आपको अन्तत: मानना है तो भोजन छोडकर खुद को और शरीर को नुकसान पहुँचाकर ही क्यों ??
इसलिए भोजन से नाराजगी ठीक नहीं क्योंकि भोजन नसीब वालों को नसीब होता है वरना दुनिया में ऐसे भी करोडों लोग हैं जिन्हें दोनों वक्त का भोजन नसीब नहीं होता। भोजन से रूठना छोडिए वरना कहीं ऐसा न हो कि भोजन ही आपसे रूठ जाए।
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जीवन के आधारभूत सत्य
Spiritualहर इंसान के जीवन में ऐसा समय जरूर आता है जब उसे समझ में नहीं आता कि वो क्या करे और क्या न करे या किधर जाये किधर न जाये ऐसे में कुछ आधारभूत सत्य उसका मार्गदर्शन कर सकते है ।