अक्सर देखा जाता है कि हमारे समाज में सास बहू की आपस में बहुत कम ही बनती है।
क्या आपने सोचा है कि ऐसा क्यों होता है?
क्योंकि हम अपनी ही बातों मुकर जाते हैं कहने को तो हम कहते हैं कि बहू बेटी जैसी होती है लेकिन सच तो ये है कि हममें से बहुत कम लोग ही बहू को बेटी स्वीकार कर पाते हैं।
बेटी जब कोई गलती या नुकसान करती है तो हम अपनी बच्ची कहकर उसे माफ कर देते हैं या उस गलती को ही नजरन्दाज कर देते हैं लेकिन वही गलती या नुकसान अगर बहू करती है तो हम उसे पता नहीं क्या क्या सुना देते हैं।
याद रखिए कि हमारी बेटियाँ भी किसी न किसी घर की बहू बनेंगी ,क्या बहुओं के साथ ऐसा व्यवहार उचित है ?
बेटे को अगर बहू के साथ हँसता बोलता देख लिया तो माँ को तुरन्त चिन्ता सताने लगती है कि अरे इसने तो मेरे बेटे को वश में कर रखा है जबकि ये बेटों पर बहुओं का हक होता है।
आखिर कब बदलेगी हमारी सोच?
कब हम एक बहू को बेटी के रूप में स्वीकार कर पाएंगे ?
सोचने की जरूरत है।
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जीवन के आधारभूत सत्य
Spiritualहर इंसान के जीवन में ऐसा समय जरूर आता है जब उसे समझ में नहीं आता कि वो क्या करे और क्या न करे या किधर जाये किधर न जाये ऐसे में कुछ आधारभूत सत्य उसका मार्गदर्शन कर सकते है ।