विकास

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विकास के नाम पर, हम सब बन गए भेड़
सड़कें चौड़ी कर रहे, काट काट कर पेड़

मुरझा रहा पर्यावरण, क्रोधित है जलवायु
पीढ़ी दर पीढ़ी सबकी, घटी औसत आयु

बढ़ रहा है तापमान, सूख गयी हैं नदियाँ
सुधारना चाहें भी तो, लग जाएँगी सदियाँ

वन है तो जीवन है, संभल जा ऐ मानव
उजाड़ रहा घर अपना, बना जा रहा दानव

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