मेरे तीन मित्र हैं
तीनों ही बड़े विचित्र हैं
बचपन, जवानी और बुढ़ापा
तीनो के अलग चरित्र हैं
एक नादान, दूजा शैतान
और तीसरा बड़ा पवित्र हैबचपन जो बड़ा भोला था
मैं नहीं माँ की गोद में वो खेला था
जब तक वो साथ था मेरे
मैं न कभी अकेला थाअपनी बदमाशियों का वो लेता मजा
उसके बदले मिलती मुझको सजाजिंदगी की तेज रफ़्तार में वो कहीं पिछड़ गया
पता भी न चला मुझे वो मुझसे बिछड़ गयाफिर एक नए दोस्त जवानी ने थामा मेरा हाथ
की खूब मस्तियाँ मैंने उसके साथ
जोश ही जोश था, दोनों को न होश था
उम्र का तकाजा था, किसी का न दोष था
की उसके साथ मैंने घन्टों बातें
आँखों ही आँखों में हम ने काटी रातें
मस्ती भरे दिन बीते, हुआ जिम्मेदारी का अहसास
सपनों को सच करने का करने लगे प्रयासइस बीच बुढ़ापा मेरा पत्र मित्र बन गया
देखा नहीं उसे पर मन में एक चित्र बन गया
धर्म अध्यात्म और ज्ञान की बात वो करता है
जवानी की तरह वो तेज भागने से डरता है
एक दिन वो मुझसे मिलने आएगा
और जिंदगी के आखिरी दिन साथ बिताएगा