कविता खो गयी है

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कविता खो गयी है

मिल नहीं रही कहीं,
न दिल में, न दिमाग में
न मेज पर, न दराज में
न ही किसी पैड पर,
न ही किसी डायरी में,
न ही मेरी कलम की स्याही में
कहाँ छोड़ आया उसे लापरवाही में

कविता खो गयी है।
ढूंढा उसे अंदर बाहर,
तुम्हारे ख़त में,
सीढ़ीयों में, छत में।

मन में कई खयाल आये
मन में कई सवाल आये

फिर जब गया मैं बगीचे में
देखा वो एक पेड़ की छाँव में सो गयी है,
और मैं समझ रहा था की कविता खो गयी है।

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