दुर्गा

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मैं गौरी हूँ, मैं कारी हूँ
मैं ही माँ तुम्हारी हूँ
जिस नारी को देते गारि
मैं ही वो बेचारी हूँ।

मैं गिरिजा हूँ, मैं भूमिजा हूँ
मैं ही शिव की प्यारी हूँ
मैं ब्रह्माणी, मैं रुद्राणी
मैं ही सागर दुलारी हूँ।

मैं चक्र हूँ, मैं त्रिशूल हूँ
मैं ही खड्ग दुधारी हूँ
पल में सब भस्म कर दे जो
मैं ही वो चिंगारी हूँ।

मैं ही शक्ति, मैं ही भक्ति
मुझमे ही तेरी आसक्ति
सुन ऐ मानव, मत बन दानव
मैं दानव संहारी हूँ।

अनूप अग्रवाल (आग), भुवनेश्वर

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