रोज नए ख्वाब दिखाती है जिंदगी
मर मर के जीना सिखाती है जिंदगीमैं हूँ अधूरा, ख्वाब अधूरे
ख्वाबों के पीछे भगाती है जिंदगी
अगर बैठ जाऊँ थक कर कभी मैं
बाँहों में अपने, सुलाती है जिंदगीमिलती है जब कभी रास्ते में,
मुझे देख कर मुस्कुराती है जिंदगी
पूछती है मुझसे, खैरियत मेरी
हाल ए दिल अपना बताती है जिंदगीसोचता हूँ चुरा लूँ दो पल जिंदगी के
वो भी तो हर पल चुराती है जिंदगी
कभी खुद ही जख्म दे जाती है मुझको
कभी खुद मरहम लगाती है जिंदगीकभी पास आये, कभी दूर जाये
कभी वो हँसाये, कभी वो रुलाये
सोचता हूँ जब भी उसे भूल जाऊँ
उसी रोज बहुत याद आती है जिंदगी