तरकीब

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देखो ये दुनिया कितनी अजीब हो गयी
अमीरी और अमीर हो गयी,
गरीबी और गरीब हो गयी।

जिंदगी से दिन पर दिन बढ़ रहा फासला
दिन पर दिन मौत और करीब हो गयी।

खुशनसीबी की बदनसीबी है
या बदनसीबी की खुशनसीबी ये
हाथों  की लकीरें  बदनसीब हो गयी।

साल दर साल सँवारता आ रहा था जिसे
मेरी वो शख्सियत बेतरतीब हो गयी।

दर्द और आँसुओं के नहीं कोई मायने
दुश्मनों को हँसाने की एक तरकीब हो गयी।

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